नाम जप की महिमा: नाम जप कलियुग में भक्ति का एक मुख्य अंग है । प्रभु के नाम जप की महिमा असीम है । संतों ने प्रभु नाम को “नाम भगवान” की संज्ञा दी है । हर युग में अपने साधन हुआ करते हैं । कलियुग में नाम जप और नाम कीर्तन ही प्रधान साधन है । सभी शास्त्र, संत और पंथ एकमत हैं कि कलियुग में नाम की ही प्रधानता है । संत कहते है कि “कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा” । सभी शास्त्रों में नाम की महिमा गाई हुई है । श्री रामचरितमानसजी की तो एक बहुत प्रसिद्ध चौपाई है “कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना, एक अधार राम गुन गाना” । किनका नाम जप किया जाए: जिन्होंने गुरु दीक्षा ली हुई है वे गुरु प्रदत्त नाम का जाप करें क्योंकि वही उनके लिए सर्वश्रेष्ठ है । वैसे नीचे दी गई नामावली में से किसी भी नाम का जो आपको प्रिय हो, उसका जाप कर सकते हैं ।
प्रभु भी अपने नाम की महिमा नहीं गा सकते । प्रभु के नाम का महत्व प्रभु भी नहीं बता सकते । प्रभु नाम की इतनी विशाल महिमा है । श्री रामचरितमानसजी में गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने लिखा है कि हम तो क्या प्रभु भी चाहें तो अप ने नाम का सामर्थ्य और अपने नाम की महिमा का बखान नहीं कर सकते । फिर शास्त्र, भक्त, संत और महात्मा तो कैसे कर सकते हैं । इसलिए शास्त्र, भक्त, संत और महात्मा जो नाम की महिमा बताते हैं वह तो ऐसा ही है जैसे सागरदेव का अंजुलि भर जल ले लिया जाए ।