श्रीगोपीजन के मन में प्रभु रमे हुए थे । अंतःकरण
में वे सदैव प्रभु को ही निहारती थीं । उनकी जिह्वा पर भी सदैव प्रभु का ही नाम
होता था । वे तो प्रभु का नाम लेती रहती थीं । वे जो दूध-दही बेचने जाती थीं तो भी
यह नहीं कहती थी कि दूध-दही ले लो, वे कहती थी कि कान्हा ले लो । नाम में वे इतनी आसक्त हो गईं थीं ।
GOD Chanting Personified: Dive into Divine Harmony