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27. श्रीगोपीजन का नाम जप कैसा था ?

श्रीगोपीजन के मन में प्रभु रमे हुए थे । अंतःकरण में वे सदैव प्रभु को ही निहारती थीं । उनकी जिह्वा पर भी सदैव प्रभु का ही नाम होता था । वे तो प्रभु का नाम लेती रहती थीं । वे जो दूध-दही बेचने जाती थीं तो भी यह नहीं कहती थी कि दूध-दही ले लो, वे कहती थी कि कान्हा ले लो । नाम में वे इतनी सक्त हो गईं थीं । 

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