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35. नाम से स्मरण तक की यात्रा क्या है ?

स्मरण भक्ति का सही अर्थ है कि नाम लिए बिना भी प्रभु स्मरण हो जाए । श्री प्रह्लादजी और श्रीगोपीजन बिना नाम लिए प्रभु का निरंतर स्मरण करते रहते थे । नाम हमें आरंभ से ही प्रभु का स्मरण करने का अभ्यास करता है । फिर परिपक्व अवस्था में नाम के बिना भी प्रभु का लगातार स्मरण चलता रहता है । 

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