भगवान के नामों का श्रवण और कीर्तन करने वाले की
गति उत्तम होती है । भूले-भटके भी कोई प्रभु का वंदन या स्मरण करता है तो भी वह पूजनीय हो जाता है ।
प्रभु का नाम कैसे भी लिया जाए वह मंगल ही करता है । कंस और रावण ने
प्रभु का नाम वैर से लिया, अजामिलजी ने अपने बेटे को पुकारने
के लिए प्रभु का नाम लिया और ऋषि श्री वाल्मीकिजी ने प्रभु का नाम उल्टा लिया पर
प्रभु के नाम ने सबका मंगल किया ।
प्रभु का नाम कैसे भी लिया जाए वह जीव का मंगल ही करेगा, यह एक अनिवार्य सत्य है ।