जो हमारे अंतःकरण में बसे होते हैं, वाणी से उन्हीं का नाम आता है, नेत्र उन्हीं के दर्शन करना चाहते हैं और कान उन्हीं के बारे में श्रवण करना चाहते हैं । इसलिए अपने अंतःकरण में सदैव प्रभु को ही बसाकर रखना चाहिए जिससे हमारी वाणी सदैव प्रभु का नाम जप करती रहे । इसी में हमारी वाणी की शोभा है क्योंकि हमें वाणी मिली ही प्रभु नाम जप के लिए है । पर हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी वाणी का उपयोग दुनियादारी में ज्यादा और नाम जप में कम करते हैं जबकि होना इसका उल्टा चाहिए ।
GOD Chanting Personified: Dive into Divine Harmony