अपनी सभी इंद्रियों से प्रभु रस का
पान करना चाहिए । नेत्रों से प्रभु रूप का पान, जिह्वा से प्रभु नाम का पान, कानों
से प्रभु कथा का पान करना चाहिए । इंद्रियों को संसार के अन्य उपयोग में कम-से-कम लेना
चाहिए । जिह्वा का धर्म है कि प्रभु का गुणानुवाद करना और प्रभु का नाम जप करना । जिह्वा
जब प्रभु नाम जप में लगती है तभी उसका
होना सार्थक है नहीं तो उस संसार की व्यर्थ बातों में लगी जिह्वा को शास्त्रों ने टर्र-टर्र करने वाली मेंढक की जिह्वा की उपमा दी है ।
GOD Chanting Personified: Dive into Divine Harmony