प्रभु ने श्री सुदामाजी को जो
सुदामापुरी का वैभव दिया उसे देखकर श्री सुदामाजी ने प्रभु से दो वरदान मांगे ।
पहला वरदान कि संपत्ति के बीच रहकर भी वे प्रभु को कभी भी नहीं भूले एवं संपत्ति
प्रभु भक्ति में व्यवधान नहीं बने । दूसरा वरदान कि उनसे जन्मों-जन्मों तक निरंतर
प्रभु का नाम जप और स्मरण होता रहे । श्री सुदामाजी ने कहा कि यह दोनों वरदान
प्रभु देते हैं तो ही वे संपत्ति स्वीकार करेंगे अन्यथा उसे प्रभु को लौटा देंगे ।
GOD Chanting Personified: Dive into Divine Harmony