Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2024

168. कलियुग को पार करने का उपाय क्या है ?

कलियुग को पार करना है तो उसके लिए केवल प्रभु नाम ही एकमात्र उपाय है । कलियुग का साधन ही नाम जप है और यही कलियुग के भवसागर से पार उतरने का एकमात्र उपा य है । हर युग में भवसागर से पार उतरने का अलग अलग साधन होता है पर कलियुग में तो नाम जप ही वह साधन है जिससे भवसागर से पार उतरा जा सकता है । कलियुग एक मुश्किल युग है इसलिए भवसागर से पार उतरने का साधन सबसे सरल रखा गया है जो कि प्रभु नाम जप है ।

167. नाम जप करते हुए क्या अनुभव होता है ?

प्रभु के दर्शन और प्रभु के नाम जप में खूब आनंद का अनुभव करना चाहिए । नाम जप हमें परमानंद प्रदान करता है और हमारे रोम-रोम को पुलकित और पवित्र करता है । संतों और भक्तों ने कलियुग में जो आनंद नाम जप में पाया है वह अद्वितीय है । नाम जप हमें परम पवित्र करता है और भीतर और बाहर से आनंदित करता है । नाम जप के परमानंद का अनुभव जो करता है वही जान सकता है ।

166. भारत भूमि श्रेष्ठ क्यों है ?

प्रभु की कथा और प्रभु का नाम जप जो भारत भूमि में है वह श्री बैकुंठजी में भी नहीं है । इसलिए संत भारत भूमि को श्री बैकुंठजी से भी श्रेष्ठ मानते हैं । इससे प्रभु नाम की महिमा का पता चलता है जिस कारण भारत भूमि को इतना श्रेष्ठ मन गया है । भारतवर्ष से संतों और भक्तों ने प्रभु नाम जप से इतनी ऊँचाइयाँ जीवन में प्राप्त की है जिसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते ।

165. नाम क्या कभी भी व्यर्थ जाता है ?

मुख से लिया प्रभु का नाम कभी भी व्यर्थ नहीं जा सकता । यह कितनी बड़ी बात है कि प्रभु का नाम कैसे भी ले लिया वह हमारा मंगल और कल्याण करके ही रहेगा । एक बार भी जीवन में किसी ने प्रभु का नाम ले लिया तो वह एक बार का लिया नाम भी कभी व्यर्थ नहीं जाएगा । संसार में सब कुछ व्यर्थ जा सकता है पर प्रभु का लिया एक भी नाम कभी व्यर्थ जाने वाला नहीं है ।

164. कलियुग में नाम का क्या महत्व है ?

कलियुग में प्रभु का नाम ही शब्द ब्रह्म है । प्रभु के नाम को नाम भगवान कहा गया है और नाम को ब्रह्म स्वरूप   माना गया है । इसलिए कलियुग में केवल प्रभु नाम ही एकमात्र आधार है । इसलिए कलियुग में प्रभु नाम की महिमा हर श्रीग्रंथ में, शास्त्रों में, संतवाणी में मिलेगी क्योंकि कलियुग में प्रभु प्राप्ति का साधन ही नाम जप है । इसलिए कलियुग के जीव को प्रभु नाम जप के महत्व को समझना चाहिए और मन लगाकर नाम जप करना चाहिए ।

163. कलियुग में प्राणी मात्र का क्या कर्तव्य होना चाहिए ?

कलियुग में प्राणी मात्र का एक ही कर्तव्य होना चाहिए कि प्रभु के नाम को पुकारना और प्रभु नाम का आश्रय लेना । कलियुग में इससे बड़ी कोई उपलब्धि नहीं है कि हमें प्रभु के मंगलकारी नाम का जप करना चाहिए । कलियुग में हमारे मंगल और कल्याण का आधार ही प्रभु का नाम जप है । नाम जप से बड़ा कलियुग में कोई साधन नहीं है ।

162. प्रभु के नाम में क्या शक्ति है ?

प्रभु के प्रत्येक नाम में दुनिया के सभी भय , रोग और शोक को दूर करने की शक्ति है । प्रभु के नाम का आश्रय लेने से सभी शोक , रोग और भय का नाश हो जाता है । यह प्रभु नाम की महिमा है कि नाम भगवन अपने नाम जापक की रक्षा करते हैं । जो शक्ति प्रभु की है वही शक्ति प्रभु के नाम की भी है । जैसे प्रभु सर्वसामर्थ्यवान हैं वैसे नाम भगवन भी सर्वसामर्थ्यवान हैं ।

161. कलियुग में किसका आश्रय लेना चाहिए ?

कलियुग में जितना हो सके हमें प्रभु नाम का आश्रय लेना चाहिए । कलियुग में प्रभु का नाम जप ही कल्याण और मंगल का मुख्य आधार है । हर युग के अपने साधन होते हैं और कलियुग की महिमा है कि सबसे सुलभ साधन नाम जप हमें कलियुग में मिला है । इसलिए कलियुग में तो केवल और केवल प्रभु नाम जप का ही सहारा जीवन में लेना चाहिए क्योंकि नाम जप से सब कुछ सुलभ हो जाता है ।

160. प्रभु नाम गाने से क्या होता है ?

प्रभु का नाम गाने वाले को प्रभु अपनी ओर खींच लेते हैं । प्रभु श्री कृष्णजी के नाम का अर्थ है कि जो भक्तों के चित्त को खींच ले , चित्त का आकर्षण कर ले । इसलिए प्रभु के नाम जप को कलियुग में सभी शास्त्रों, संप्रदायों, पंतों ने एकमत से मान्यता दी है कि नाम जप से ही कलियुग में कल्याण संभव है । सभी एकमत हैं कि कलियुग में नाम जप से बड़ा कोई भी साधन नहीं है ।

159. कौन-सा धन श्रेष्‍ठ है ?

संसार का धन तुच्छ है । प्रभु नामरूपी धन ही श्रेष्‍ठतम धन है । जैसे संसार के धन को कांच की उपमा दे तो प्रभु नाम को हीरे की उपमा भी कम पड़ेगी । प्रभु नाम रूपी धन अनमोल है उसकी कोई उपमा है ही नहीं । जैसे प्रभु उपमा रहित हैं वैसे प्रभु का नाम भी उपमा रहित है । प्रभु नाम रूपी धन के आगे संसार का धन टिक ही नहीं सकता क्योंकि जो लाभ प्रभु नाम रूपी धन का है वह अद्वितीय है ।

158. श्रीभीष्म पितामह ने मृत्यु-शय्या पर लेटे-लेटे क्या किया ?

श्रीभीष्म पितामह ने मृत्यु - शय्या पर लेटे-लेटे प्रभु के हजार नामों से यानी सहस्त्रनाम से प्रभु का अर्चन किया था । श्रीभीष्म पितामह का नाम महाभागवत में लिया जाता है और उनके द्वारा सहस्त्रनाम की अर्चना को श्रीविष्णु सहस्त्रनाम कहा जाता है और कलियुग में इसकी अपार महिमा है । मृत्यु - शय्या पर लेटे-लेटे प्रभु का हजार नामों से अभिनंदन करना कितनी बड़ी उपलब्धि है ।

157. प्रभु नाम के रत्न का मूल्यांकन क्या है ?

प्रभु नाम रत्न का मूल्यांकन अनमोल है । जिनको प्रभु नाम के रत्न का मूल्यांकन जीवन में समझ में आ जाता है वे उसे कमाने में ही अपना जीवन लगा देते हैं । कलियुग में ऐसा सभी संतों और भक्तों ने अपना जीवन नाम धन कमाने में लगा दिया और इसका लाभ दुनिया को दिखाया है । उनसे प्रेरणा लेकर हमें भी प्रभु के मंगलमय नाम का जप करना चाहिए ।

156. क्या नाम हमारी रक्षा करता है ?

हमें संसारी धन की रक्षा करनी पड़ती है परंतु हमें प्रभु नामरूपी धन की रक्षा नहीं करनी पड़ती अपितु प्रभु नामरूपी धन ही हमारी रक्षा करता है । यह कितना बड़ा फर्क है कि प्रभु नाम हमारी हर परिस्थिति में रक्षा करता है और इहलोक और परलोक दोनों जगह करता है । प्रभु का नाम एक रक्षा कवच की तरह हमारी सदैव रक्षा करता है ।

155. जीवन में विश्राम कब मिलता है ?

प्रभु नाम जपने से ही जीवन में विश्राम मिलता है । इसके अलावा अन्य कोई उपा य नहीं कि जीव को जीवन में विश्राम मिल जाए । संसार की उठापटक में कहाँ विश्राम है, विश्राम तो एकांत में बैठकर प्रभु का नाम जप करने में ही है । ऐसा सभी संतों और भक्तों ने अनुभव किया है कि जीव का सच्चा विश्राम तो केवल और केवल प्रभु का नाम जप करने में ही है ।

154. क्या नाम जापक को भय या कष्ट नहीं सताते ?

प्रभु का नाम जपने वालों को कोई भय या कष्ट नहीं सताते । नाम भगवान   एक रक्षा कवच बना कर नाम जापक की भय और कष्टों   से रक्षा करते हैं । नाम जापक को प्रभु अभय कर देते हैं और उसके कष्ट हर लेते हैं । नाम जापक को संसार के भय और कष्ट तो क्या नर्क की यातना भी भयभीत नहीं करती क्योंकि नर्क का प्रावधान ही उसके लिए खत्म हो जाता है ।

153. हमें जिह्वा का क्या उपयोग करना चाहिए ?

जिह्वा हमें प्रभु नाम उच्चारण हेतु ही मिली है । जिह्वा का एक ही काम है प्रभु का नाम लेना पर हम इसका उपयोग व्यर्थ की बातें करने में करते हैं । जितना जिह्वा से नाम जप होगा उतना हमा रा मंगल और कल्याण सुनिश्चित   हो जाएगा । जिह्वा द्वारा संसार की व्यर्थ बातें करने से हमें कोई लाभ मिलाने वाला नहीं है । इसलिए जिह्वा से नाम जप करना चाहिए जिसमें लाभ-ही-लाभ है ।

152. क्या विपरीत परिस्थिति में भी नाम जप हो सकता है ?

भक्त श्री प्रह्लादजी और श्री विभीषणजी दैत्यों के बीच रहते हुए भी प्रभु में आसक्त थे और प्रभु का नाम सदा उनकी जिह्वा पर रहता था । दोनों ने विपरीत परिस्थिति में भी नाम जप किया और संसार को बताया कि नाम जप किसी भी परिस्थिति में संभव है । इसलिए प्रभु का नाम जप हर परिस्थिति में करना चाहिए चाहे अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति ही क्यों न हो ।

151. भक्त श्री प्रह्लादजी का बालपन में नाम जप कैसा था ?

जब भक्त श्री प्रह्लादजी के बालक मित्र खेलते थे तो उस समय भी वे प्रभु कीर्तन और प्रभु नाम जप करते थे । इतनी भक्ति भक्त श्री प्रह्लादजी में थी । नाम जप के कारण असुर कूल में उत्पन्न होने पर भी वे प्रभु के लाड़ले बने और प्रभु ने उनकी रक्षा के लिए अवतार लिया । भक्त श्री प्रह्लादजी का नाम महाभागवत में आता है ।

150. भगवत् नाम से क्या मिल सकता है ?

भगवत् नाम से ही भगवत् धाम हमें मिल सकता है । इससे बड़ी और क्या उपलब्धि हो सकती है कि प्रभु का नाम जप हमें प्रभु के धाम में प्रभु के श्रीकमलचरणों में पहुँचा देता है । कलियुग में जो कार्य प्रभु का नाम जप कर सकता है वह अन्य कोई साधन नहीं कर सकता । इसलिए कलियुग में एकमत से सभी शास्त्रों और संतों ने नाम की महिमा गाई है ।

149. प्रभु नाम जप में क्या शक्ति है ?

प्रभु के नाम में इतनी अदभुत शक्ति है कि कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो प्रभु का नाम स्मरण करने से उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवत् धाम जाने योग्य बन जाता है । ऐसा सामर्थ्‍य अन्य किसी साधन में नहीं है जो प्रभु नाम जप में है । कलियुग में तो प्रभु नाम जप के प्रभाव के आगे कोई अन्य साधन टिक ही नहीं सकते ।

148. अपनी जिह्वा का सही उपयोग क्या है ?

अपनी जिह्वा का उपयोग केवल प्रभु कीर्तन , प्रभु नाम जप और प्रभु का यशगान गाने के लिए करना चाहिए । पर हम ठीक इसके विपरीत उपयोग करते हैं और उसे संसार की व्यर्थ बातों में लगा देते हैं । शास्त्रों ने संसार की व्यर्थ बातें करने वाली जिह्वा को मेंढक   की टर्र-टर्र करने वाली जिह्वा की उपमा दी है ।

147. भक्त कैसे नाम जप करते हैं ?

हमारे रोम-रोम से प्रभु का नाम निकलना चाहिए । भक्तों ने ऐसा करके दिखाया है । भगवती जना बाई ने इतना नाम जप किया कि उनके बनाए गोबर के उप लों में से श्रीविट्ठल-श्रीविट्ठल की ध्वनि स्पष्ट सुनाई पड़ती थी । प्रभु नाम जप से संतों और भक्तों को इतनी प्रीति होती है कि उनका रोम-रोम प्रभु का नाम जप करता है ।

146. प्रभु के नाम के साथ क्या श्रीलीला जुड़ी हुई हैं ?

प्रभु के हर नाम के साथ एक-न-एक श्रीलीला जुड़ी हुई हैं । उदाहरण स्वरूप भक्तों के क्लेश को प्रभु हरते हैं इसलिए प्रभु का एक नाम श्रीहरि है । प्रभु भक्तों के मन को मोहित करके चुरा लेते हैं इसलिए प्रभु का एक नाम श्रीमनमोहन है । प्रभु गौ-माता के पालक हैं इसलिए प्रभु का एक नाम श्रीगोपाल है ।

145. जीवन में क्या करना चाहिए ?

जीवन में प्रभु का नाम भी लेना चाहिए और प्रभु का काम भी करना चाहिए । सबसे अच्छा है कि प्रभु का नाम लेते-लेते प्रभु का काम और प्रभु की सेवा करनी चाहिए । इससे बड़ी कोई जीवन में उपलब्धि नहीं कि मुख से प्रभु का नाम जप हो और शरीर से प्रभु की सेवा हो ।

144. किस बात का लोभ जीवन में लाभदायक होता है ?

जीवन में लोभ हो तो उसकी दिशा बदलने की जरूरत है । रुपया कमाने के लोभ को बंद करके उसे प्रभु नाम धन कमाने का लोभ बना देना चाहिए । प्रभु नाम जप का लोभ बड़ा ही मंगलकारी और लाभदायक होता है । जैसे संसारी का लोभ धन कमाने में होता है वैसे ही संतों और भक्तों का लोभ प्रभु नाम जप करने में होता है ।

143. कैसे भी किया नाम जप क्या हमारा उद्धार करेगा ?

कैसे भी भगवत् नाम का उच्चारण हो जाए , चाहे गलती से , चाहे आलस्य से , चाहे भाव से , चाहे अभाव से , कैसे भी हो जाए वह हमारा उद्धार-ही-उद्धार करेगा । जैसे बीज को हम धरती में उलटा डाले या सुलटा डाले वह अंकुरित होगा वैसे ही शास्त्र और संत कहते हैं कि नाम जप कैसे भी किया गया हो वह हमारा उद्धार करके ही रहेगा ।

142. प्रभु श्री महादेवजी के नाम जप की क्या महिमा है ?

प्रभु श्री महादेवजी इतने परम उदार हैं कि संत कहते हैं कि एक बार तन्मयता से प्रभु श्री महादेवजी का नाम लेने वाले को प्रभु मोक्ष दे देते हैं । दो बार तन्मयता से प्रभु श्री महादेवजी का नाम लेने वाले के प्रभु ऋणी हो जाते हैं । ऐसे प्रभु श्री महादेवजी जिनका नाम जप हम करते हैं वे भी प्रभु श्री रामजी का नाम जप करते रहते हैं ।

141. प्रभु नाम जप की क्या महिमा है ?

प्रभु नाम के जप की महिमा असीम है । प्रभु नाम जप की महिमा से सारे श्रीग्रंथ और शास्त्र भरे पड़े हैं । सारे संतों और भक्तों ने नाम की महिमा गाई है क्योंकि उन्‍होंने नाम जप से अपने कल्याण का अनुभव किया है और नाम जप पर बहुत जोर दिया है । कलियुग में सभी संतों और भक्तों ने प्रभु नाम जप की असीम महिमा का प्रतिपादन किया है ।

140. क्या प्रभु का नाम पाप नाश करता है ?

प्रभु का नाम जुबान से उच्चारण होने पर उस समय हृदय में बसे पाप निकल भागते हैं । पाप की क्षमता नहीं की प्रभु नाम जप के आगे टिक सके इसलिए जैसे ही नाम जप जीवन में प्रारंभ होता है और लगातार होता रहता है पाप हमारे भीतर से निकल जाते हैं । पाप निकलने से पाप के लिए दंड का प्रावधान भी खत्म हो जाता है ।

139. क्या प्रभु का नाम ही अमृत तुल्य है ?

जगत में प्रभु का नाम ही एकमात्र अमृत है । इसे छोड़कर संसार के विषयों के विष को क्यों पिया जाए ? जीवन में प्रभु का नाम नहीं लिया तो जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं है । इसलिए अपने मंगल के लिए प्रभु के नाम जप को करते हुए अपने जीवन को काटना चाहिए ।

138. संतों द्वारा प्रभु नाम की क्या व्याख्या है ?

प्रभु के नाम की संतों द्वारा व्याख्या यह है कि वे सबका मंगल-ही-मंगल करते रहते हैं । प्रभु का हर नाम हमारा मंगल, कल्याण और उद्धार करता है । इसलिए प्रभु का नाम जप नियमित रूप से रोजाना करना चाहिए जिससे हमारा मंगल, कल्याण और उद्धार संभव हो सके ।