Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2024

202. कलियुग में प्रभु का स्मरण कैसे किया जाए ?

कलियुग का युग धर्म यही है कि प्रभु के नाम , गुण और श्रीलीला का श्रवण और कीर्तन किया जाए और प्रभु का स्मरण किया जाए । नाम जप को प्रभु के स्मरण का कलियुग में सबसे सफल साधन माना गया है । कलियुग में नाम और ना मी प्रभु में कोई भेद नहीं है । जहाँ कलियुग में प्रभु के स्मरण के अन्य साधन विफल हो जाते हैं वहीं नाम जप सफलता से हमें प्रभु का स्मरण करवाता है ।

201. कलियुग में प्रभु प्राप्ति का सबसे सुलभ साधन क्या है ?

चारों युगों में , चारों श्रीवेदों में प्रभु के नाम की महिमा बताई गई है । पर कलियुग में इसी प्रभु नाम की सर्वोत्तम महिमा है और यही सर्वोत्तम साधन है क्योंकि योग , यज्ञ , तप , कर्मकाण्ड , व्रत इस कलियुग में आसानी से और विधिपूर्वक हो पाना संभव नहीं है । इसलिए कलियुग में नाम जप ही प्रभु प्राप्ति का सबसे सुलभ साधन है ।

200. कलियुग में प्रधानता किसकी होनी चाहिए ?

मन का स्वभाव है कि मन हमेशा परिवर्तन चाहता है । इसलिए मन को कभी प्रभु के नाम का जप , कभी प्रभु के रूप का दर्शन और कभी प्रभु की श्रीलीला ओं का चिंतन करने में बदल-बदल कर हमें लगाना चाहिए । पर कलियुग में प्रधानता नाम जप की ही होनी चाहिए । कलियुग में ज्यादा-से-ज्यादा समय नाम जप को ही देना चाहिए ।

199. नाम कीर्तन क्या है ?

प्रभु के नाम , गुण और श्रीलीला का गान करना ही कीर्तन है । प्रभु के नाम जप को भी कलियुग में नाम कीर्तन माना गया है । प्रभु के नाम का हम जप भी कर सकते है और साथ ही नाम का कीर्तन भी कर सकते हैं । संत एकांत में नाम जप करते हैं और जब समाज साथ होता है तो नाम कीर्तन करते हैं ।

198. प्रभु का नाम जीवन में सदा क्यों लेना चाहिए ?

प्रभु का नाम जीवन में सदा लेते रहना चाहिए और सदा जीवन में प्रसन्न रहना चाहिए । संतों और भक्तों ने कलियुग में ऐसा करके दिखाया है कि प्रभु के नाम जप से उनका जीवन सुगम बन गया और प्रारब्ध के कष्‍ट भी उन्‍होंने हंसते-हंसते सहे हैं । ऐसा केवल और केवल नाम के चमत्कार के कारण संभव हुआ है ।  

197. कलियुग में नाम जप में क्या सामर्थ्‍य है ?

प्रभु नाम के जप में बहुत बड़ी ताकत होती है । प्रभु नाम का जप हमारे जीवन को सुगम बना देता है । नाम जप सभी व्यवधा नों को जीवन से मिटा देता है और हमा रे जीवन का मार्ग सुगम बना देता है । कलियुग में नाम जप में वह सामर्थ्‍य है जो अन्य किसी साधन में नहीं है । इसलिए कलियुग में नाम जप की ही प्रधानता है ।

196. नाम जप का पुरुषार्थ क्यों करना चाहिए ?

दो अक्षर के दो शब्द हैं । नाम और काम । काम प्रभु को हमसे दूर कर देता है और नाम हमें प्रभु से मिलाता है । कलियुग में अधिक त र लोग कामना पूर्ति हेतु प्रयत्न करते हैं और प्रभु नाम जप नहीं के बराबर करते हैं । जबकि होना इसका उल्टा चाहिए कि कामना पूर्ति प्रारब्ध पर छोड़ देना चाहिए और पुरुषार्थ नाम जप के लिए करना चाहिए ।

195. प्रभु का नाम जीवन में कैसा प्रकाश करता है ?

प्रभु नाम जपने से और प्रभु की कथा श्रवण करने से जीवन के सारे संशय मिट जाते हैं । कलियुग में नाम जप से वह प्राप्त होता है जो अन्य किसी भी साधन से इस युग में संभव नहीं है । प्रभु का नाम जप जीवन में ऐसा प्रकाश करता है कि जीवन के सारे संशय मिट जाते हैं । नाम जप हमारी आध्यात्मिक उन्नति करवाता है ।

194. प्रभु का नाम लेने से क्या होता है ?

प्रभु का जहाँ प्रेम से नाम लिया जाता है प्रभु वहाँ दौड़े चले आते हैं । नाम और ना मी प्रभु में कोई भेद नहीं है । प्रभु अपने नाम जापक से दूर नहीं रह सकते । प्रभु के नाम को संतों ने पतंग की डोरी कहा है । जैसे पतंग की डोरी को खींचने से पतंग हमारे पास आ जाती है वैसे ही प्रभु का नाम प्रभु को हमारे समक्ष ला देता है ।

193. कलियुग का युग धर्म क्या है ?

प्रभु का नाम गाना और प्रभु का नाम श्रवण करना जीवन में अनिवार्य रूप से होना चाहिए । यह कलियुग का युग धर्म है कि कलियुग के प्रभाव से बचने के लिए और अपना मंगल और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए जितना हो सके प्रभु का नाम जप जीवन में करते रहना चाहिए ।

192. प्रभु का नाम दयानिधि क्यों है ?

प्रभु का एक नाम दयानिधि है इसलिए प्रभु कभी-न-कभी तो दया अवश्य करेंगे । संत विनोद में कहते हैं कि प्रभु और माता का जो नाम पुकारता है उन पर दया और कृपा की वर्षा होती है । यह प्रभु और माता का स्वभाव और प्रण है कि वे अपने नाम जापक पर दया और कृपा किए बिना नहीं रह सकते ।

191. जीवन में क्या करना चाहिए ?

प्रभु का नाम जीवन में गाते रहना चाहिए और संसार के विषयों से मन हटाते रहना चाहिए । यह सफलता का परम सिद्धांत है कि कलियुग में जितना हो सके प्रभु का नाम जप करना चाहिए और सांसारिक विषयों के सेवन से अपने को दूर रखना चाहिए । पर हम जीव इसका उल्टा करते हैं कि जीवन में नाम जप तो करते नहीं और सांसारिक विषय भोगों में लगे रहते हैं ।

190. इहलोक और परलोक कैसे सुधरेंगे ?

हमारी जिह्वा प्रभु का नाम लेने लग जाए तो हमारा इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाता है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि कलियुग में प्रभु के नाम जप से ही इहलोक और परलोक दोनों जगह हमारा मंगल और कल्याण सुनिश्चित होता है । इसलिए ही नाम जप की महिमा कलियुग में सभी शास्त्रों ने, संतों ने और भक्तों ने एक स्वर से गाई है ।

189. प्रभु का नाम क्या करता है ?

प्रभु का कोई भी नाम हम अपने मुँह से ले लें तो उससे हमारा निश्चित कल्याण ही होगा । प्रभु के सभी नाम समान प्रभाव वाले है और हमारा मंगल और उद्धार करने में परम समर्थ हैं । यह नाम अपराध है कि प्रभु और माता के किसी भी नाम में ब ड़े और छोटे का भेद किया जाए । प्रभु और माता के सभी नामों का एक समान ही प्रभाव है ।

188. सनातन धर्म का गौरव क्या है ?

प्रभु के अनेकों नाम हैं । भक्तों को जो नाम अच्छा लगता है उस नाम से भक्त प्रभु को पुकारने लगते हैं और प्रभु उस नाम को स्वीकार कर लेते हैं । यह सनातन धर्म का गौरव है कि एक प्रभु के अनेक रूप और नाम हैं और जिसको जो रूप और नाम प्रिय लगे उससे वह प्रभु को रिझा सकता है ।

187. प्रभु हमारी पुकार कब सुनते हैं ?

रोज प्रभु का नाम पुकारने से एक-न-एक दिन प्रभु अवश्य हमारी पुकार सुनेंगे । संत एक व्यावहारिक उदाहरण देकर समझाते हैं कि जैसे रोज-रोज हम किसी व्यक्ति के घर के बाहर जाकर उसका नाम लेकर आवाज देंगे तो एक-न-एक दिन वह बाहर निकल कर देखेगा कि कौन मुझे पुकारता है । वैसे ही प्रभु का नाम जप करने पर प्रभु जरूर उस जीव की तरफ अप नी कृपा और करुणा दृष्टि करते हैं ।

186. कौन-सा धन इकट्ठा करें ?

प्रभु नामरूपी धन ही इकट्ठा करें जिसे मौत भी छीन नहीं पाए । मौत जीवन में अर्जित किया हुआ सब कुछ छीन लेगी और हमें परलोक खाली हाथ ही जाना पड़ेगा । इसलिए जीवन में जी त ना बन पड़े प्रभु का नाम जप करना चाहिए जिसको मौत भी छीन नहीं पाए और वह नामरूपी धन सदा-सदा के लिए हमारे साथ रहे और हमारा मंगल सुनि श्चि त करे ।

185. सुख क्या करने में है ?

सुख सिर्फ प्रभु नाम जपने में ही है । कलियुग में जो सुख प्रभु नाम जप में है वह अन्य किसी भी साधन जैसे तप, यज्ञ, कर्मकांड, दान, पुण्य आदि में नहीं है । कलियुग में नाम की ही महिमा है और नाम में ही सामर्थ्‍य है कि वह नाम अपने ना मी प्रभु से हमें मिला देता है ।

184. श्रीराम नाम किन्हें प्रिय है ?

कालों के काल और महाकाल प्रभु श्री महादेवजी भी श्रीराम नाम जपते रहते हैं । श्रीराम नाम इतना दिव्य है । प्रभु श्री हनुमानजी नित्य और निरंतर श्रीराम नाम का ही जप करते हैं । श्रीराम नाम प्रभु का अति सरल और मधुर नाम है और इस नाम को उ ल्टा जपने पर भी ऋषि श्री वाल्मीकिजी इतने बड़े ब्रह्मज्ञानी बन गए ।

183. प्रभु नाम जप से क्या मिलेगा ?

प्रभु भजन बिना विश्राम नहीं , प्रभु नाम बिना आराम नहीं । कलियुग में प्रभु नाम जप नहीं किया तो अन्य किसी भी साधन से आराम मिलना संभव नहीं है । कलियुग का युग धर्म ही प्रभु का नाम जप है इसलिए नाम जप के बिना कहीं  भी विश्राम या आराम संभव नहीं है ।

182. श्रीराम नाम का महत्व क्या है ?

प्रभु के सभी नामों में श्रीराम नाम श्रेष्ठ हों , ऐसा वरदान देवर्षि प्रभु श्री नारदजी ने प्रभु से मांगा और प्रभु ने तथास्तु कहा । इसलिए प्रभु के सभी नामों में श्रीराम नाम की बड़ी महिमा है , ऐसा संतों का मत है । प्रभु श्री महादेवजी निरंतर श्रीराम नाम का ही जप किया करते हैं । श्रीराम नाम सहस्त्रनाम तुल्य नाम है ।

181. प्रभु को कौन प्रिय होते हैं ?

जो प्रभु का नाम लेकर सोते हैं और उठते ही प्रभु का नाम लेते हैं प्रभु को वे प्रिय होते हैं । यह बात सभी संत एकमत से कहते हैं कि सोते समय अंतिम कार्य प्रभु का नाम लेना होना चाहिए और सुबह उठते ही पहला कार्य प्रभु का नाम लेना होना चाहिए । जो ऐसा नियमित करता है उसका मंगल कोई नहीं रोक सकता है ।

180. हमें सुबह प्रथम कार्य क्या करना चाहिए ?

हमें सुबह प्रभु के नाम उच्चारण के साथ ही जगना चाहिए । सुबह का सबसे प्रथम काम प्रभु का स्मरण करना ही होना चाहिए । प्रभु ने रात की निद्रा दी और फिर सुबह हमारी आँखों को खोला और एक नवीन दिन हमें जीने के लिए दिया, इसका आभार मानना चाहिए और प्रभु को धन्यवाद देते हुए प्रभु का सर्वप्रथम स्मरण करना चाहिए ।

179. प्रभु का एक नाम श्रीगोविंद क्यों है ?

गौ-माता की रक्षा करने के कारण प्रभु का एक नाम श्रीगोविंद पड़ा । प्रभु गौ-माता से बहुत प्रेम करते हैं और जब कोई भक्त उन्हें श्रीगोविंद कहकर पुकारता है तो प्रभु को अपने श्रीकृष्णावतार की गौ-सेवा की भीनी-भीनी याद आ जाती है और प्रभु गौ-माता को याद करके अति प्रसन्न होते हैं ।

178. प्रभु के अनेक नाम क्यों पड़े ?

जब आचार्य श्री गर्गाचार्यजी प्रभु श्री कृष्णजी का नामकरण करने लगे तो वर्णमाला के शब्द आपस में लड़ने लगे कि हमारे अक्षर से प्रभु के नाम की शुरुआत होनी चाहिए । इसलिए प्रभु के अनेक नाम पड़े और सभी अक्षरों को सम्मान मिला । प्रभु इतने दयालु और कृपालु हैं कि वर्णमाला के प्रायः सभी शब्दों को अपने नाम के उच्चारण का सम्मान दिया ।

177. प्रभु का नाम भक्तों की रक्षा कैसे करता है ?

जब भक्त श्री प्रह्लादजी को राक्षस हाथियों से मरवाने के लिए लेकर आए तो वे श्रीहरि स्मरण का नाम जप करने लगे । हाथियों ने भक्त श्री प्रह्लादजी को प्रणाम किया और उनके सामने दंडवत हो गए । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि प्रभु के नाम जापक की रक्षा प्रभु करते हैं और ऐसा करते हुए प्रभु प्रकृति के नियम को भी बदल देते हैं ।

176. अंतिम श्वास में क्या होना चाहिए ?

अंतिम श्वास में भगवत् नाम जिह्वा पर आ जाए तो भगवत् प्राप्ति निश्चित है । सभी शास्त्र, ऋषि और संत एकमत हैं कि अंतिम बेला पर प्रभु का मंगलमय नाम अगर हमारी जिह्वा पर आ जाए तो निश्चित प्रभु के धाम की प्राप्ति होती है और प्रभु के श्रीकमलचरणों में वास मिलता है ।

175. नर्क कौन नहीं जाता ?

नर्क वही जाते हैं जिनकी जिह्वा से प्रभु नाम का गुणानुवाद नहीं होता , जिनका चित्त प्रभु के श्रीकमलचरणों का स्मरण नहीं करता और जिनका शीश प्रभु के श्रीकमलचरणों में नहीं झुकता । जिनकी जिह्वा से लगातार जीवन में और अंत बेला पर प्रभु नाम जप हो जाता है वे नर्क के प्रावधान से बच जाते हैं ।

174. कौन प्रभु को प्यारा होता है ?

प्रभु का नाम लेने वाला प्रभु का प्यारा होता है । जो सदा प्रेम से प्रभु का नाम जप करके प्रभु को पुकारता है प्रभु उसका मंगल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते । प्रभु का नाम जापक प्रभु को सबसे प्यारा होता है ऐसा सभी संतों और भक्तों का कलियुग में एकमत है ।

173. प्रभु नाम को रसायन क्यों कहते हैं ?

प्रभु नाम का रसायन हमारे पास है । रसायन वह होता है जो रोग को सदैव के लिए जड़ से समाप्त कर देता है । प्रभु नाम को कलियुग का रसायन कहा गया है क्योंकि कलियुग के सभी दोषों और पापों को प्रभु का नाम समूल से नष्‍ट कर देता है । कलियुग में ऐसा करने का सामर्थ्‍य केवल और केवल प्रभु के नाम जप में ही है ।

172. जीवन में कौन-सा धन अर्जित करना चाहिए ?

प्रभु नामरूपी धन जीवन में अर्जित करना चाहिए । हम सांसारिक धन अर्जित करने में और सात पीढ़ियों के लिए अर्जित करने में अपना पूरा जीवन दांव पर लगा देते हैं जो हमारे जीवन के बाद कोई काम आने वाला नहीं है । ह मारे जीवन में प्रधानता प्रभु नामरूपी धन अर्जित करने की होनी चाहिए जो इहलोक और जीवन के बाद परलोक दोनों जगह काम आएगा ।

171. प्रभु श्री कृष्णजी के नाम का अर्थ क्या है ?

प्रभु श्री कृष्णजी के नाम का अर्थ यह है कि जो भक्तों के अंतःकरण को अपनी ओर आकर्षित कर लें । इसलिए ही प्रभु श्री कृष्णजी का सुंदर श्रृंगार होता है और श्रृंगार उन्हें पाकर इतना मोहक बन जाता है कि हमारा चित्त अनायास ही बिना प्रयास के प्रभु की तरफ आकर्षित हो जाता है ।

170. प्रभु नाम रस पीने से क्या होगा ?

प्रभु नाम का रस पीकर देखें । ऐसा करने पर हमारा जीवन ही सुधर जाएगा । हमने संसार का विषय रस पिया है जिससे कभी तृप्ति नहीं मिलती और अतृप्ति बनी ही रहती है । इसलिए प्रभु का नाम रस पीना चाहिए जिससे हमें तृप्ति-ही-तृप्ति मिलेगी और हमारा मंगल-ही-मंगल सुनिश्चित होगा ।

169. जुबां से क्या काम करना चाहिए ?

भक्त को बोलने के लिए कुछ नहीं बचता क्योंकि वह प्रभु का नाम ही रटता रहता है । जुबां से लेने के लिए अगर कुछ है तो वह प्रभु का नाम ही है । यह शास्त्र मत है कि जुबां से व्यर्थ सांसारिक बातें नहीं करके प्रभु का नाम, जो हमें प्रिय हो, उसे जपना चाहिए क्योंकि यही हमारे मंगल का सूचक है ।