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Showing posts from July, 2024

234. सच्चा भाग्यशाली कौन ?

वही भाग्यशाली होते हैं जिनकी जिह्वा पर सदैव प्रभु का नाम जप चलता रहता है । आज संसार में धन, संपत्ति, पद के कारण लोगों को भाग्यशाली माना जाता है पर शास्त्र दृष्टि से सच्चा भाग्यशाली वह है जो प्रभु का नाम रूपी धन जीवन में कमाता है । हमें पास कितनी फैक्ट्री, घर, गाड़ी, बैंक बैलेंस है इससे संसार हमें भाग्यशाली मानेगा पर शास्त्र, ऋषि और संत प्रभु नाम जापक को कलियुग में सबसे भाग्यशाली मानते हैं ।     

233. कौन कृपा की वर्षा करती हैं ?

प्रभु कृपा करते हैं पर भगवती राधा माता प्रभु से भी अधिक कृपा बरसाती हैं । इसलिए माता का एक नाम संतों ने बरसाने वाली रखा है । संत कहते हैं कि बरसाना गांव के कारण नहीं बल्कि कृपा बरसाने के कारण माता का नाम बरसाने वाली पड़ा है । माता की कृपा, करुणा, दया सबसे अधिक होती है । भगवती राधा माता कृपा करती नहीं बल्कि कृपा की वर्षा करती हैं । भगवती राधा माता के कारण प्रभु भी कृपा करने के लिए आतुर हो जाते हैं ।

232. नाम जापक की चिंता कौन करता है ?

प्रभु का नाम जिह्वा पर हो तो हम जीवन में कभी भी थकेंगे या गिरेंगे नहीं । यह शाश्वत सिद्धांत है कि प्रभु का नाम हमें बड़ी-से-बड़ी विपत्ति से भी उबार देता है और जीवन की हर परिस्थिति में हमारी रक्षा करता है । नाम जापक को फिर अपनी चिंता   करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि उसकी चिंता “नाम भगवान” करते हैं । प्रभु नाम के बल पर कलियुग की बड़ी विपत्तियों और विपदाओं से हम बच जाते हैं ।

231. प्रभु प्राप्ति का सबसे सरल साधन क्या है ?

कलियुग में प्रभु कथा और प्रभु नाम जप प्रभु को पाने के दो बहुत सरल साधन हैं । कलियुग को बहुत कठिन युग माना गया है जिसमें बड़े साधन होने संभव नहीं हैं इसलिए प्रभु नाम जप और प्रभु कथा श्रवण कलियुग के सरल साधन हैं । इसमें भी प्रभु नाम जप तो सबसे सरल और सुलभ साधन है । हम चलते फिरते, काम करते मन-ही-मन प्रभु का नाम जप कर सकते हैं ।  

230. क्या माता के सभी नाम एक समान हैं ?

श्रीराधा नामावली का अवलोकन करते हैं तो वहाँ भगवती राधा माता का एक नाम भगवती रुक्मिणीजी है । इसलिए श्रीराधा तत्व और श्रीरुक्मिणी तत्व में कोई फर्क नहीं है । दोनों एक ही हैं । इसलिए माता के किसी भी नाम में भेद नहीं करना चाहिए । जैसे प्रभु के सभी नाम एक समान फल देने वाले है वैसे ही माता के सभी नाम एक समान फल देने वाले हैं ।

229. श्रीराधा नाम इतना अदभुत क्यों है ?

त्रिलोकी को पावन करने वाला अदभुत नाम है श्रीराधा । रोम-रोम में प्रेम रस भरने वाला नाम है श्रीराधा । जीवन की सभी बाधाओं को सदैव के लिए दूर करने वाला एक नाम है श्रीराधा । कृपा और करुणा बरसाने वाला एक नाम है श्रीराधा । प्रभु श्री कृष्णजी को भी आकर्षित  करने वाला एक नाम है श्रीराधा ।  

228. प्रभु के नामकरण के समय क्या हुआ ?

प्रभु के नामकरण के बाद श्री गर्गाचार्यजी ने कहा कि युगों-युगों तक जो “श्रीकृष्ण” नाम सबका कल्याण करेगा वह सबसे पहले मेरे मुँह से निकला । इसी को उन्होंने अपना अहोभाग्य माना और प्रभु के नामकरण की दक्षिणा मान ली । यही बात ऋषि श्री वशिष्ठजी ने प्रभु श्री रामजी के नामकरण के समय कही कि युगों-युगों तक संसार को विश्राम देने वाले परम पुनीत “श्रीराम” नाम का सबसे पहले उच्चारण उनके मुँह से हुआ ।  

227. प्रभु के अनेक नाम क्यों हैं ?

प्रभु को एक-दो नामों में बांधा नहीं जा सकता । इसलिए प्रभु के अनेक नाम हैं । यह सनातन धर्म का गौरव है कि प्रभु ने परम पवित्र भारत भूमि में पूर्ण अवतार, अंश अवतार और कला अवतार लिया है और अनेक श्रीलीलाएं की हैं जिस कारण प्रभु के अनेक नाम पड़े हैं । भक्तों ने भी प्रेम से प्रभु को अनेक नामों से संबोधित किया है और प्रभु ने प्रेम के कारण उन्हें स्वीकारा है ।    

226. नाम जप से क्या होता है ?

प्रभु के नाम स्मरण मात्र से ही हमारी सभी चिंताएं दूर हो जाती हैं । नाम जप का इतना सामर्थ्‍य है कि विषम परिस्थिति से भी हमें निकाल लेता है और हमारा अमंगल नहीं होने देता । नाम जापक के साथ प्रभु का रक्षा कवच होता है और कोई भी   अमंगल उसका बाल भी बाँका नहीं कर सकता । नाम जप से हमारी जो भी जीवन में चिंताएं हैं वह दूर हो जाती है ।

225. कलियुग की रियायत क्या है ?

इतनी रियायत केवल कलियुग में ही है कि केवल प्रभु के नाम का आधार जीवन में लेने वाला भी तर जाता है । इसलिए संत कहते हैं कि कलियुग में केवल प्रभु का नाम जपना चाहिए । कलियुग एक बहुत ही कठिन युग है इसलिए प्रभु प्राप्ति का साधन इसमें सबसे सरल और सुगम रखा गया है जो की प्रभु का नाम जप और नाम कीर्तन है ।

224. नाम जप कैसे होना चाहिए ?

प्रभु का नाम हमेशा हमारे दिल और दिमाग में रहना चाहिए । हम चाहे व्यापार करें या नौकरी या घर का काम करें या पढ़ाई हर समय काम करते हुए प्रभु नाम का जाप हमारे भीतर चलना चाहिए । यह वह परम अवस्था है जहाँ हमें पहुँचना है पर इसका धीरे-धीरे अभ्यास करना पड़ेगा । यह एकाएक नहीं होगा पर अभ्यास से यह एक दिन संभव हो जाएगा कि संसार का काम भी होता रहे और साथ ही नाम जप भी भीतर चलता रहे ।   

223. अंतिम अवस्था में लिया प्रभु का नाम क्या करता है ?

रावण की नाभि में बाण लगते ही उसने श्रीराम नाम पुकारा और प्रभु ने उसे उसी समय परम गति प्रदान कर दी । प्रभु इतने करुणामय हैं और प्रभु के नाम का इतना प्रबल सामर्थ्‍य है । यह उदाहरण है कि कोई कितना भी पापी क्यों न हो अगर अंतिम अवस्था में प्रभु के नाम का उच्चारण हो जाता है तो प्रभु का नाम उसे परम गति प्रदान करने का सामर्थ्‍य रखता है । पर अंतिम अवस्था में नाम का स्मरण तभी संभव है जब इसका अभ्यास जीवन भर किया जाए ।

222. कैसे भी लिया प्रभु का नाम क्या फलीभूत होता है ?

आलस्य से , भाव से , कुभाव से , कैसे भी प्रभु का नाम लिया जाए वह अपना काम करता है और हमेशा करेगा । यह बात ऋषि श्री वाल्मीकिजी और श्री अजामिलजी के प्रसंग से सिद्ध होती है । एक ने प्रभु का उलटा नाम लिया और दूसरे ने अपने पुत्र का नाम लिया जो की भगवान के नाम के ऊपर था और दोनों तर गए । जैसे बीज को जमीन में सुलटा डालें या उलटा डालें वह फलीभूत होगा वैसे ही प्रभु का नाम भी हमेशा फलीभूत होता आया है और आगे भी होगा ।     

221. नाम को नाम भगवान क्यों कहते हैं ?

प्रभु ने अपने नामों को अपनी पूरी शक्ति प्रदान कर दी है । इसलिए प्रभु के नाम में इतना अद्वितीय बल है । जो परम सामर्थ्‍य प्रभु का है वही परम सामर्थ्‍य प्रभु के नाम का भी है । इसलिए ही संतजन नाम को नाम नहीं बल्कि “नाम भगवान” कहकर संबोधित करते हैं । प्रभु के नाम को भी भगवन का दर्जा मिला हुआ है क्योंकि नाम का सामर्थ्‍य भी भगवन जैसा ही है ।   

220. नाम रूपी धन का क्या लाभ है ?

संत कहते हैं कि प्रभु नाम ही हीरा है जिसमें न तो कभी जंग लगती है और न ही कभी कीड़े पड़ते हैं । इस धन की कमाई पर न तो कर लगता है, न भाईयों के बीच इसका बंटवारा होता है, न इसे कोई लूट सकता है और यह दिन पर दिन सवाया होता जाता है । सभी भक्तों और संतों ने इसलिए ही इस नाम रूपी धन को कमाने में अपना जीवन व्यतीत किया है ।

219. महाधन कौन-सा है ?

संत कहते हैं कि प्रभु का नाम ही महाधन है । अगर सांसारिक धन को कांच माना जाए जो की शास्त्र मानते हैं तो प्रभु का नाम जप अनमोल हीरा रुपी महाधन है । सांसारिक धन और उससे कमाई संपत्ति जीवन काल के बाद काम आने वाली नहीं है जबकि प्रभु नाम रूपी महाधन इहलोक और परलोक दोनों जगह हमारे काम आने वाला है । परलोक में हमारी गति ही इस प्रभु नाम धन से ही होगी ।    

218. कलियुग में नाम जप की क्या महिमा है ?

प्रभु का नाम आलस्य से या श्रद्धा से किसी भी भाव से जपे तो भी कृपा निश्चित ही होगी । कोई कैसे भी प्रभु का नाम जपे उसका उद्धार निश्चित है । प्रभु नाम की इतनी बड़ी महिमा है । यह महिमा कलियुग में अन्य किसी भी साधन की नहीं है । इसलिए ही कलियुग के सभी भक्तों और संतों ने नाम जप और नाम कीर्तन का ही आश्रय लिया है और वे भवसागर से तर गए ।

217. कलियुग का सच्चा भजन क्या है ?

प्रभु के नाम का आस्वादन करना ही सच्चा भजन है । कलियुग का भजन ही नाम जप और नाम कीर्तन है । कलियुग में जो उपलब्धि नाम जप और नाम कीर्तन से होती है वह अन्य किसी भी साधन से नहीं हो सकती, यह परम सत्य है । इसलिए कलियुग में भजन करना है तो खूब प्रभु का नाम जप और नाम कीर्तन करें । कलियुग में इससे बड़ा कोई भजन नहीं है ।   

216. कलियुग में किसका आश्रय लेना चाहिए ?

कलियुग में केवल और केवल प्रभु के नाम का ही आश्रय लेना चाहिए । कलियुग में युग के प्रभाव के कारण, पूर्व युगों के और कोई साधन नहीं टिक सकते । सभी शास्त्र, संत और भक्त एकमत से कलियुग में नाम जप और नाम कीर्तन की महिमा का ही बखान करते हैं । हमें यह मानना चाहिए कि कलियुग सबसे कठिन युग है इसलिए इसका साधन सबसे सरल है जो की नाम जप और नाम कीर्तन है ।   

215. कलियुग में कौन तरता है ?

सभी जीवों का कल्याण प्रभु का नाम लेने से ही होगा । यह एक शाश्वत सत्य है जिसका प्रतिपादन हर शास्त्र में, हर संत और भक्त के द्वारा कलियुग में हुआ है । फिर भी हम इस सत्य को नहीं मानते और नाम जप को कलियुग का प्रधान और परम साधन नहीं मानते । हम सोचते हैं कि नाम जप तो भोले भाले लोगों के लिए है और हमारा साधन तो बड़ा होना चाहिए । पर सत्य यह है कि कलियुग में जो नाम जप और नाम कीर्तन का साधन करता है वही तरता है ।    

214. प्रभु किसके अधीन हैं ?

नाम की महिमा इतनी है कि भावपूर्वक श्रीराम कहते ही प्रभु श्री रामजी हमारे अंतःकरण में प्रकट हो जाते हैं । श्रीकृष्ण कहते ही मुरली लिए प्रभु श्री कृष्णजी हमारे अंतःकरण में प्रकट हो जाते हैं । नाम से संतों ने ऐसा करके दिखाया है । प्रभु अपने नाम के और अपने नाम जापक के अधीन होते हैं, ये शास्त्रों के वचन हैं जो प्रभु सत्य करके दिखाते हैं ।

213. क्या नाम कीर्तन हमें रोमांचित कर देता है ?

भक्ति ऐसी हो कि प्रभु का नाम उच्चारण करते वक्त शरीर रोमांचित होवें , कंठ गदगद हो जाए और अश्रुधारा बह निकले । ऐसा भक्तों ने अपने जीवन चरित्र में करके दिखाया है । महाप्रभुजी ने तो रोमांचित होकर ऐसा नाम जप और कीर्तन किया कि जंगल के जानवर भी नृत्य करने लगे और भाव विभोर हो उठे । नाम कीर्तन के वक्त के सच्चे भक्त की अवस्था का बखान संभव ही नहीं है क्योंकि जो परमानंद होता है वह उन्हीं के अनुभव का विषय है ।  

212. जीवन में अविलंब हमें क्या करना चाहिए ?

प्रभु का नाम सदैव लेने की आदत जीवन में बनानी चाहिए । हम कितनी-कितनी गलत आदत जीवन में डालते है पर प्रभु के नाम जप की आदत नहीं डालते, यह कितनी बड़ी विडंबना है । जो प्रभु नाम जप की आदत जीवन में डाल लेता है उसका परम मंगल और कल्याण सुनिश्चित हो जाता है । इसलिए अविलंब हमें प्रभु नाम जप की आदत जीवन में डालनी चाहिए चाहे हम जीवन की किसी भी अवस्था में हों ।  

211. प्रभु के नाम जप से क्या होगा ?

बिना जाने आग का स्पर्श करने पर भी हम जलेंगे । इसी प्रकार बिना प्रभु के नाम की महिमा जाने भी प्रभु का नाम लेंगे तो भी हमारा कल्याण निश्चित होगा । श्री अजामिलजी ने अपने पुत्र के बहाने प्रभु का नाम “नारायण” लिया था और प्रभु के पार्षद उसे यमपाश से बचाने तत्काल आ गए । जरा कल्पना करें कि अगर हम सच में प्रभु का नाम जप करेंगे तो क्या प्रभु हमारा मंगल और कल्याण करने नहीं आएंगे ।   

210. शास्त्रों की दृष्टि से कलियुग में धनी कौन है ?

प्रभु नामरूपी संपत्ति जिसने प्राप्त कर ली वही सच्चा अमीर है और प्रभु नामरूपी संपत्ति जिसने प्राप्त नहीं की वही सबसे बड़ा दरिद्र है । ऐसी शास्त्रों की व्याख्या है । यह कितनी उपयुक्त व्याख्या है जो यह बताती है कि कलियुग में प्रभु नाम जप का धन ही कमाना चाहिए जो हमारा परम मंगल और कल्याण करने का सामर्थ्‍य रखता है । प्रभु नाम जापक से बड़ा धनी कोई भी नहीं है ।

209. कलियुग में धन्य कौन है ?

जिसको प्रभु नाम की खुमारी चढ़ी हुई है वही व्यक्ति धन्य है । कलियुग में सबसे धन्य वही जीव है जिसकी प्रभु के नाम जप में दृढ़ श्रद्धा हो और दृढ़ विश्वास हो । जिस जीव को कलियुग में यह पक्का विश्वास होता है कि प्रभु का नाम जप सबसे बड़ा और सबसे सफल साधन है वही सच्चा ज्ञानी है । प्रभु नाम जापक से बड़ा कलियुग में कोई भी नहीं है ।   

208. कलियुग के दुःख मिटाने का सबसे सरल साधन क्या है ?

सच्चे हृदय से प्रभु का नाम लेने पर दुःख चला जाता है । यह शाश्वत सिद्धांत है कि प्रभु के नाम जप में दुःख मिटाने का असीम सामर्थ्‍य और शक्ति है । कलियुग में दुःख मिटाने का साधन सबसे सरल और सुगम रखा गया है और वह है प्रभु नाम जप और प्रभु नाम का कीर्तन । पर इतना सरल होने पर भी दुर्भाग्य है कि जीव ऐसा   नहीं करता ।

207. किसका आलस्य कभी भी जीवन में नहीं करना चाहिए ?

प्रभु का नाम लेने में आलस्य कभी भी जीवन में नहीं करना चाहिए । जीवन में किसी भी चीज के लिए आलस्य कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि आलस्य जीव का सबसे बड़ा शत्रु है, ऐसा शास्त्र मत है । इसलिए जो हमारा परम धर्म है कि कलियुग में नाम जप करना उसमें तनिक भी आलस्य हमें नहीं करना चाहिए । हमें नाम जप करते हुए दिन बिताना चाहिए न कि आलस्य में दिन बिताना चाहिए ।

206. क्या संतों के रोम-रोम ने नाप जप किया है ?

संतों के रोम-रोम ने नाम जप किया है । हमारे भी रोम-रोम में प्रभु के नाम , रूप और श्रीलीला की मिठास होनी चाहिए । भगवती जनाबाई के गोबर के उपलों से श्रीविट्ठल-श्रीविट्ठल की ध्वनि आती थी । संत श्री तुकारामजी ने अपनी पत्नी को कह रखा था कि दोपहर का भोजन देने आओ तो चौराहे की भूमि पर कान लगाकर सुनना जिधर से श्रीविट्ठल-श्रीविट्ठल की ध्वनि आती हो उधर आ जाना, मैं उधर ही मिलूंगा ।

205. भगवत् प्राप्ति का कलियुग का साधन क्या है ?

कलियुग में प्रभु नाम जप और कीर्तन सर्वोपरि साधन हैं । हर युग के अपने-अपने साधन होते हैं जिससे भगवत् प्राप्ति संभव होती है । कलियुग में भगवत् प्राप्ति के साधन हैं प्रभु नाम जप और प्रभु नाम का कीर्तन । सभी शास्त्र, संत और भक्त एकमत हैं कि कलियुग में प्रभु को पाना है तो यही साधन उपयुक्त है ।

204. क्या भक्तों ने अनेक नामों में एक ही प्रभु को पाया है ?

भक्तों ने हर देश में , हर वेश में प्रभु को पाया है और उन्होंने गाया है कि प्रभु के नाम अनेक हैं पर प्रभु एक ही हैं । श्री भक्तमालजी में अनेक सतयुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग के भक्तों की गाथा है जिन्‍होंने अनेक नाम से प्रभु को रिझाया है पर प्रभु के अनेक रूपों में प्रभु को एक ही पाया है ।

203. कलियुग की विशेष बात क्या है ?

प्रभु के नाम की बहुत विलक्षण और बहुत बड़ी महिमा हर युग में रही है । कलियुग में तो विशेष बात यह है कि सब साधन गौण हो जाते हैं और प्रभु के नाम जप की महिमा सबसे बड़ी होती है । सभी शास्त्रों में इस बात का प्रतिपादन मिलेगा कि कलियुग का सबसे प्रबल साधन प्रभु नाम जप ही है ।