संतों के रोम-रोम ने नाम जप किया है ।
हमारे भी रोम-रोम में प्रभु के नाम, रूप और
श्रीलीला की मिठास होनी चाहिए । भगवती जनाबाई के गोबर के उपलों से
श्रीविट्ठल-श्रीविट्ठल की ध्वनि आती थी । संत श्री तुकारामजी ने अपनी पत्नी को कह
रखा था कि दोपहर का भोजन देने आओ तो चौराहे की भूमि पर कान लगाकर सुनना जिधर से
श्रीविट्ठल-श्रीविट्ठल की ध्वनि आती हो उधर आ जाना, मैं उधर ही मिलूंगा ।
GOD Chanting Personified: Dive into Divine Harmony