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Showing posts from August, 2024

260. कलियुग का युग धर्म क्या है ?

प्रभु के नाम का , कथा का और सत्संग का दीपक सदैव अपने जीवन में जलाकर रखना चाहिए । इसे कभी भी जीवन में बुझने नहीं देना चाहिए । इसमें भी नाम जप की कलियुग में प्रधानता होती है क्योंकि कलियुग का साधन ही नाम जप है । कलियुग का युग धर्म भी नाम जप की बात ही करता है क्योंकि इस युग में नाम जप से ही वह सब सुलभ है जो अन्य युगों में अन्य कठिन साधनों से संभव होता था ।

259. नाम धन क्यों कमाना चाहिए ?

प्रभु की कृपा हमारे जीवन में बेहिसाब होती है इसलिए हमें गिन-गिन कर प्रभु का नाम नहीं लेना चाहिए । हमें भक्ति की एक परिपक्व अवस्था आने के बाद श्‍वासों की माला पर लगातार नाम जप करते रहना चाहिए । फिर गिनती की कोई आवश्‍यकता ही नहीं होती क्योंकि प्रत्‍येक श्‍वास पर अखंड नाम जप चलता रहता है । संतों और भक्तों ने इतना नाम धन कमाया है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । हमें भी उनसे प्रेरणा लेकर नाम धन कमाना चाहिए ।    

258. श्रीमद् भगवद् गीताजी में नाम जप के बारे में क्या कहा गया है ?

श्वास-श्वास से प्रभु के नाम की आहुति देकर हमें अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए । कलियुग का यज्ञ यही है कि नाम की आहुति दी जाए । प्रभु ने श्रीमद् भगवद् गीताजी में कलियुग में यज्ञों में जप यज्ञ को सबसे बड़ा कहा है । यह प्रभु के श्रीवचन है कि कलियुग में नाम जप सबसे बड़ा यज्ञ है और जीव को निरंतर इस यज्ञ में प्रभु के नाम की आहुति देकर इसे सफल करना चाहिए ।  

257. क्या प्रभु आधे नाम पर आ जाते हैं ?

प्रभु को कभी दुर्लभ नहीं मानना चाहिए । प्रभु इतने सुलभ हैं कि आधे नाम पर आ जाते हैं बस कोई भाव से बुलाने वाला चाहिए । नाम जप की इतनी महिमा है कि भक्तों की रक्षा करने के लिए प्रभु आधे नाम पर आ जाते हैं । श्री गजेंद्रजी ने हरि नाम से प्रभु को विपत्ति में पुकारा था और “ह” उच्चारण होने पर प्रभु आ गए और “रि” उच्चारण होने तक प्रभु ने श्री गजेंद्रजी को विपत्ति से निकाल लिया ।

256. नाम जप क्यों युवान अवस्था से करना चाहिए ?

अंतिम समय में प्रभु का नाम हमारे मुख से स्वतः ही निकले इसके लिए जीवनभर अभ्यास करना पड़ता है । इसलिए ही बचपन और जवानी से ही नाम जप करने का अभ्यास करना चाहिए । जो अभ्यास जीवन में होगा वही अंतिम बेला पर काम आएगा । इसलिए नाम जप को बुढ़ापे के लिए नहीं छोड़ना चाहिए और युवान अवस्था से ही नाम जप आस्था के साथ करना चाहिए ।

255. भवसागर पार करने का कलियुग में उपाय क्या है ?

प्रभु का नाम हमें संसार सागर के पार उतार देता है । कलियुग में भवसागर पार उतरने का अन्य कोई भी सरल उपाय नहीं है । नाम जप ही वह उपाय है जिससे सरलता से भवसागर को पार किया जा सकता है । जैसे समुद्री जहाज में बैठकर हम सागर पार कर लेते है वैसे ही प्रभु नाम के जहाज में बैठने से ही भवसागर पार उतरा जा सकता है । कलियुग में भवसागर पार करने का यही सबसे सरल और सफल साधन है ।    

254. क्या हर श्वास में प्रभु का नाम जप होना संभव है ?

जीवन में इतनी भक्ति करनी चाहिए कि हर श्वास में प्रभु का नाम जप होने लगे । कलियुग में जब भक्ति परिपक्व होती है तो प्रभु नाम जप में हमारी दृढ़ आस्था हो जाती है और प्रभु का नाम हमें प्रिय लगने लगता है । फिर नाम की माला छुट जाती है और हर श्वास में प्रभु का नाम जप होने लग जाता है । यह एक बहुत ऊँ‍‍ची अवस्था है जहाँ भक्ति के कारण भक्त पहुँच जाता है ।

253. अंत समय में प्रभु का नाम लेने का क्या महत्व है ?

उस व्यक्ति का जन्म सफल हो जाता है जो अंत समय में प्रभु का नाम अपनी जिह्वा पर लाने में सक्षम हो जाता है । जब अंत समय में प्रभु का नाम जिह्वा पर आता है तो यमदूत दूर चले जाते हैं और प्रभु के पार्षद तत्काल आ जाते हैं । पर अंत समय में प्रभु का नाम अपनी जिह्वा पर आए यह तभी संभव है जब इसका अभ्यास जीवनभर किया जाए अन्यथा हमारे संचित पाप हमें प्रभु के नाम का उच्चारण अंत समय नहीं करने देते ।

252. क्या नाम जप प्रभु कृपा का फल होता है ?

प्रभु ही अपना नाम जपने का सामर्थ्य और सुविधा हमें देते हैं जिससे कि हमारा कल्याण हो सकें । नाम जप में आस्था और नाम जपने का सामर्थ्‍य प्रभु की बहुत बड़ी कृपा होती है । यह प्रभु कृपा का ही फल होता है कि नाम जप में हमारी रूचि होती है नहीं तो आधुनिक लोगों को नाम जप में रूचि ही नहीं होती । आधुनिक लोग नाम जप को बड़ा छोटा और दुर्बल साधन मानते हैं जो कि उनका दुर्भाग्य होता है क्योंकि कलियुग में नाम जप से बड़ा और सफल साधन अन्य कोई नहीं है ।

251. प्रभु के नाम को नाम ब्रह्म क्यों कहते हैं ?

प्रभु का नाम ही नाम ब्रह्म है । प्रभु के नाम को नाम ब्रह्म और नाम भगवान कहते हैं । संत केवल नाम नहीं कहते बल्कि नाम को प्रभु की तरह सम्मान देने के लिए उसे “नाम ब्रह्म” या “नाम भगवान” कहते हैं । इससे संतों के मन में प्रभु नाम के प्रति कितना सम्मान है इस तथ्य का पता चलता है क्योंकि उन्‍होंने नाम के बल पर जीवन में बहुत कुछ अर्जित किया है ।

250. नाम की संख्या का नियम पूरा होने के बाद क्या करें ?

संत कहते हैं कि प्रभु का नाम कभी भी गिनकर नहीं लेना चाहिए क्योंकि प्रभु हमें बेहिसाब देते हैं तो हिसाब करके उनका नाम क्यों लिया जाए । प्रभु ने हमें जितनी श्‍वासें दी है उस कृपा को भी हम गिनकर पूरा नहीं कर सकते क्योंकि जीवनभर के कमाए धन से हम एक अतिरिक्त श्‍वास भी नहीं खरीद सकते । इसलिए जो नाम की संख्या का जो दैनिक नियम हमने लिया है उसे पूरा करने के बाद भी नाम जप श्‍वासों की माला पर करते रहना चाहिए ।

249. क्या दुःख से भागना चाहिए ?

संत कहते हैं कि जो दुःख पल-पल प्रभु का नाम रटाए उसे जीवन में स्वीकार करना चाहिए । सुख हमें संसार में फंसाकर उलझाए रखता है और प्रभु से विमुख कर देता है । सुख के समय हम संसार की सुख सुविधाओं और भोगों में लिप्त रहते हैं । दुःख जीवन और संसार के असार का हमें बोध कराता है और हमें प्रभु के सन्मुख मोड़ देता है । इसलिए संतों ने कहा है कि दुःख से भागना नहीं चाहिए और उसका प्रभु सानिध्य देने के लिए धन्यवाद करना चाहिए ।

248. प्रभु श्री कृष्णजी के नाम की व्याख्या क्या है ?

प्रभु श्री कृष्णजी के नाम की व्याख्या यह है कि जो सबको आकर्षित करें । श्री गर्गाचार्यजी ने जब सर्वप्रथम प्रभु के अवतार में नामकरण किया तो उन्‍होंने कहा कि यह श्रीकृष्ण नाम सबको आकर्षित करेगा । प्रभु श्री कृष्णजी का नाम एक आकर्षण पैदा करता है जो प्रभु के रूप, सद्गुण, श्रीलीला को देखकर स्वाभाविक ही जीव को हो जाता है । यह श्री कृष्णजी के नाम का चमत्कार है कि उनका नाम सबको इतना आकर्षित कर लेता है ।

247. जीवन में विपत्तियों को पार करने का उपाय क्या है ?

प्रभु श्री हनुमानजी को सागर लांघते वक्त कितनी बाधाएं आई पर उन्होंने प्रभु श्री रामजी का नाम लेकर सभी बाधाओं को आसानी से पार कर लिया । यह प्रसंग हमें शिक्षा देने के लिए है कि प्रभु के नाम के बल पर हम भी सभी विपत्तियों को पार कर सकते हैं । कलियुग में सभी शास्त्रों के निर्देश और भक्तों का जीवन चरित्र देखकर यह बात पक्की हो जाती है कि जीवन में विपत्तियों को पार करना है तो प्रभु नाम जप ही इसका एकमात्र उपाय है ।  

246. प्रभु के नाम का सामर्थ्य क्या है ?

प्रभु के नाम का सामर्थ्य इतना बड़ा है कि गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम नाम की महिमा प्रभु श्री रामजी भी नहीं गा सकते । यह श्रीरामचरितमानसजी की बड़ी प्रसिद्ध चौपाई है जिसमें गोस्वामीजी एक चुनौती की तरह कहते हैं कि कलियुग में प्रभु का नाम इतना बड़ा साधन है जिसकी महिमा गोस्वामीजी तो क्या प्रभु स्‍वयं भी नहीं गा सकते ।    

245. भवसागर से पार होने का कलियुग का क्या साधन है ?

प्रभु का नाम जहाज है जिस पर चढ़कर हम संसार सागर के पार उतर सकते हैं । संसार सागर के पार उतरने के लिए कोई प्रबल साधन चाहिए और कलियुग में अन्य कोई भी साधन इतना समर्थ नहीं है । हर युग के अपने-अपने साधन होते हैं और कलियुग का एकमात्र साधन हैं “प्रभु का नाम जप” जिससे हम भवसागर से सुगमता से पार हो सकते हैं ।    

244. नाम जप से जीवन में क्या परिवर्तन होगा ?

प्रभु के नाम को नहीं छोड़कर बाकी सब कुछ जीवन में धीरे-धीरे करके छोड़ देना चाहिए । जीवन के विकार यानी काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार आदि धीरे-धीरे करके छोड़ देना चाहिए । पर यह तभी संभव होगा जब प्रभु का नाम जप जीवन में होगा । नाम जप धीरे-धीरे करके हमारे भीतर के विकारों को खत्म कर देता है । यह सामर्थ्‍य कलियुग में केवल और केवल प्रभु नाम जप में ही है ।

243. क्या नाम जप से दुःख मिटते हैं ?

जब हम प्रभु का नाम निरंतर जीवन में लेने का अभ्यास करते हैं तो हमारे सब दुःख धीरे-धीरे करके दूर होते चले जाते हैं । नाम में पाप नाश का इतना अदभुत सामर्थ्‍य है जो अन्य किसी भी साधन में नहीं है । दुःख हमें पापों के दंड स्वरूप ही जीवन में मिलते हैं और जब नाम जप पाप का ही नाश कर देता है तो दुःख का प्रावधान ही समाप्त हो जाता है ।

242. क्या गिनकर नाम लेना चाहिए ?

एक भाव है कि प्रभु हमें बेहिसाब देते हैं तो हम क्यों गिन के प्रभु का नाम लें । तात्पर्य यह है कि प्रभु का नाम कभी भी गिन-गिन कर नहीं लेना चाहिए । नाम को गिनना एक संख्या पूरी करने के लिए तो सही है पर संख्या पूरी होने के बाद भी नाम जप मानसिक रूप से निरंतर जीवन में चलते ही रहना चाहिए । संतों ने अपनी श्‍वासों पर नाम जप किया है जिसमें गिनती की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती ।  

241. नाम जप का आग्रह सभी ने क्यों किया है ?

प्रभु के नाम को अपनी जिह्वा पर सदैव रखना चाहिए । गोस्वामी श्री तुलसीदासजी कहते हैं कि जिह्वा पर प्रभु का नाम रहेगा तो भीतर और बाहर दोनों तरफ उजाला करेगा । नाम की ज्योत भीतर भी हमें प्रकाशित करेगी और बाहर भी प्रकाशित करेगी । प्रभु के नाम की यह अदभुत महिमा है जो अन्य किसी की भी नहीं है । इसलिए नाम जप का आग्रह सभी शास्त्रों और संतों ने किया है ।  

240. प्रभु नाम की महिमा क्या है ?

संत कहते हैं कि प्रभु भी अपने नाम की महिमा नहीं गा सकते क्योंकि प्रभु के नाम की महिमा इतनी बड़ी है । इसलिए संत नाम को “नाम भगवान” कहकर संबोधित करते हैं । इससे नाम की महिमा का पता चलता है कि प्रभु का नाम प्रभु की तरह सर्वसामर्थ्यवान है । जो प्रभु की शक्तियां हैं वह सब प्रभु के नाम में समाहित हैं ।

239. किसके मुँह में सदैव प्रभु का नाम रहता है ?

प्रभु को चाहने वालों के मुँह में सदैव प्रभु का नाम रहता है । यह उस भक्त के जीवन की उपलब्धि होती है, उसके साधन की उपलब्धि होती है कि हर समय उसकी जिह्वा प्रभु नाम का जप करती रहती है । जिन प्रभु को हम चाहते हैं उनके नाम को भक्त कभी नहीं भूलते और सदैव याद रखते हैं । जीवन में जिसने प्रभु के नाम को पकड़ लिया उसका मंगल, कल्याण और उद्धार सुनिचित हो गया ।    

238. श्रीराधा नाम लेने से क्या होता है ?

प्रभु प्रेम की धारा का नाम ही श्रीराधा है । श्रीराधा नाम प्रेम रस का प्रतीक बन चुका है । श्रीराधा नाम सुनकर प्रभु प्रेम के आधीन हो जाते हैं । श्रीराधा नाम जपने वाले के जीवन से प्रभु सभी बाधाओं को तत्काल दूर कर देते हैं जिससे श्रीराधा नाम की महिमा का हमें पता चलता है । श्रीराधा नाम जापक के मुँह से सुनना प्रभु को अत्यंत प्रिय लगता है ।  

237. क्या नाम जापक का मुक्ति पर स्वाभाविक अधिकार होता है ?

प्रभु नाम का आश्रय लेने वाला स्वतः ही मुक्ति पा जाता है । जो प्रभु का नाम लेता है उसे मुक्ति के लिए अलग से कोई भी प्रयास नहीं करना पड़ता । नाम जप के कारण मुक्ति उसे सुलभता से स्वतः ही मिल जाती है । शास्त्र और संत कहते हैं कि प्रभु नाम जापक का मुक्ति पर स्वाभाविक अधिकार होता है । संत विनोद में यहाँ तक कहते हैं कि मुक्ति तो नाम जापक की जेब में ही होती है, उसे मांगने की आवश्‍यकता ही नहीं होती ।

236. क्या प्रभु के लाड़ले भक्त भी प्रभु को नाम देते हैं ?

प्रभु का एक-एक नाम प्रभु की एक-एक श्रीलीला के कारण पड़ा है । इसलिए ही प्रभु के अनंत नाम हैं । प्रभु जब अवतार लेते हैं तो जीवों के कल्याण के लिए अनेक श्रीलीलाएं करते हैं और अनेक नाम ग्रहण करते हैं । फिर प्रभु के लाड़ले भक्त भी प्रेम में प्रभु को अनेक नाम देते हैं और उसी नाम से पुकारते हैं । प्रभु सभी नाम प्रेम से स्वीकार करते हैं ।

235. प्रभु के इतने अनंत नाम क्यों हैं ?

प्रभु के नाम इतने अनंत हैं कि हमारा जीवन समाप्त हो जाए फिर भी हमारी जिह्वा पर प्रभु के नाम पूरे नहीं होंगे । यह सनातन धर्म का गौरव है कि प्रभु की अनेक श्रीलीलाओं के कारण प्रभु के अनेकों नाम पड़े हैं । जो भी नाम हमें प्रिय हो प्रभु ने हमें वही नाम लेने का अधिकार दिया है क्योंकि प्रभु और माता के सभी नाम समान हैं और एक बराबर फल देने वाले हैं ।