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Showing posts from September, 2024

290. कलियुग का सबसे सरल और सफल साधन क्या है ?

कलियुग का प्रधान साधन है कि हमें केवल प्रभु के नाम को ही जीवन में रटना होता है । सभी शास्त्र, संत और भक्त एकमत है कि कलियुग में प्रभु का नाम ही एकमात्र आधार है । सभी शास्त्रों ने लेखनी से और सभी संतों और भक्तों ने अपने अनुभव के बाद वाणी से इस बात का प्रतिपादन किया है कि कलियुग का सबसे सरल और सफल साधन नाम जप ही है ।

289. कलियुग में प्रभु का नाम पकड़ने से क्या होगा ?

प्रभु का नाम अपने आप प्रभु के रूप, श्रीलीला और धाम का प्रकाश हमारे जीवन में कर देता है । प्रभु का नाम अपने ना मी प्रभु को हमारे सामने प्रकट कर देता है फिर प्रभु के रूप, श्रीलीला और धाम से हमारा परिचय हो जाता है । संत तो यहाँ तक कहते हैं कि जैसे पलंग की चादर का एक सिरा खिचेंगे तो पूरी चादर हाथ में आ जाएगी वैसे ही कलियुग में नाम को पकड़ लिया तो प्रभु के रूप, श्रीलीला और धाम की कृपा अपने आप हो जाएगी ।

288. शास्त्रों में कलियुग के लिए कौन-सा साधन कहा गया है ?

शास्त्रों में कलियुग के लिए कहा गया है कि हरि नाम , हरि नाम , हरि नाम केवलम । संकेत यह है कि केवल प्रभु का नाम कलियुग में जपें तो प्रभु हमारे जीवन में अपने आप आ जाएंगे । यहाँ “केवलम” शब्‍द सबसे महत्वपूर्ण है और ध्यान देने योग्य है । अगर केवलम शब्‍द का प्रयोग नहीं होता तो हमें शास्त्र अन्य साधनों के बारे में भी आग्रह करते पर कलियुग में केवलम कहकर नाम जप को ही शास्त्रों ने सबसे प्रधान और मुख्य साधन माना है ।

287. कलियुग में भक्ति को जागृत करने का प्रधान साधन क्या है ?

हमें अपना घर छोड़ कहीं नहीं जाना होता है , विशुद्ध प्रभु नाम का आश्रय जीवन में लेकर हम जहाँ भी हैं , जिस रंग में हैं , जिस संग में हैं , जिस हाल में हैं व हीं नाम जप के कारण भक्ति जागृत हो जाती है और प्रभु हमारे जीवन में पधारते हैं । नाम जप कलियुग में भक्ति का सबसे प्रधान साधन है । नाम जप से कलियुग में भक्ति परिपक्व होती है ।

286. संत हमारा हित कैसे करते हैं ?

संत वही हैं जो संसार के विषय हमसे छुड़ा दे और जो प्रभु का नाम हमसे जपा दे । कलियुग में जिन संतों को नाम की महिमा पता है और स्वयं नाम जप का साधन करते हैं वे ही हमारा परम हित कर सकते हैं । वे हमारा सर्वाधिक हित करते हैं कि हमें अन्य साधनों में न उलझाकर सीधे कलियुग के सबसे सरल और सफल साधन प्रभु के नाम जप में लगा देते हैं ।

285. जीवन में किसका आश्रय होना चाहिए ?

केवल प्रभु नाम का ही आश्रय जीवन में लेना चाहिए । अन्य किसी भी सांसारिक आश्रय का जीवन से बिलकुल भी त्याग होना चाहिए तभी नाम अपना प्रभाव करता है । जब तक हममें अन्य आश्रयों का बल होगा प्रभु से हम दूर ही रहेंगे, जब केवल और केवल प्रभु के नाम का ही आश्रय होगा तभी प्रभु का सानिध्य और प्रभु का रक्षा कवच हमें मिलेगा ।

284. कलियुग का सबसे सरल और सफल साधन क्या है ?

प्रभु का नाम लेने से संसार के सभी दुःख और क्लेश दूर होते हैं । यह शाश्‍वत सिद्धांत है कि कलियुग में नाम जप से सफल कोई साधन नहीं है जो कि दुःख और क्लेश को जीवन से दूर कर सके । इसलिए ही हर शास्त्र, संत और भक्त ने एकमत से नाम जप का कलियुग में प्रतिपादन किया है कि इससे सरल और सफल साधन अन्य कोई भी नहीं है ।

283. कलियुग में नाम जप इतना श्रेष्‍ठ क्यों है ?

प्रभु को किसी भी नाम से और किसी भी दिशा में हम पुकारते हैं तो प्रभु अवश्य उत्तर देते हैं । प्रभु अंतर्यामी हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वत्र हैं और सर्वसामर्थ्यवान हैं इसलिए अपने नाम जापक की पुकार तत्काल सुनते हैं और उसका समाधान करते हैं । जितनी जल्दी नाम जप से प्रभु प्रसन्न होते हैं उतना कलियुग में अन्य किसी साधन से नहीं होते ।

282. प्रभु नाम की रटन से क्या होगा ?

प्रभु नाम की रटन अपने आप एक दिन हमारा जप बन जाएगी । धीरे-धीरे प्रभु या माता का जो भी नाम हमें प्रिय हो उसे मन-ही-मन रटना चाहिए । नाम की रटन को अपनी आदत बना ले ना चाहिए । इससे लाभकारी और मंगलकारी आदत और कोई नहीं हो सकती । इस आदत से मन-ही-मन नाम का जप होने लगेगा और हमारा मंगल, कल्याण और उद्धार हो जाएगा ।

281. नाम जप हो पाना पुण्य का सूचक क्यों है ?

हमारे पिछले किए हुए संचित पापों के कारण हमें प्रभु का नाम नहीं सुहाता । न जाने कितने जन्मों का संचित पुण्य जब उदय होता है तब जिव्हा पर प्रभु का नाम आता है और प्रभु के नाम लेने में हमें आनंद आता है । बिना पुण्यों के उदय के और प्रभु की कृपा के प्रभु का नाम जप संभव नहीं हो सकता । इसलिए जिनसे जीवन में नाम जप हो पा रहा है उन्हें स्वयं को अति भाग्यवान मानना चाहिए और प्रभु को इसके लिए धन्यवाद देना चाहिए ।

280. मन में क्या चलाना चाहिए ?

यदि मन का तार सही कसा हुआ हो तो प्रभु नाम की ध्वनि ही मन से निकलती है । जैसे इकतारा सही कसा हुआ हो तो सच्चा सुर ही निकलता है । मन का सुर ही प्रभु का नाम जप है ऐसा शास्त्रों और संतों का मत है । मन की वीणा पर प्रभु का नाम जप ही चलाना चाहिए तभी हमारा मानव जीवन सफल माना जाएगा ।

279. नाम जप से हमारी गति कैसे सुधरती है ?

प्रभु का नाम ही हमारी गति सुधारने वाला साधन होता है । कलियुग में अन्य कोई भी साधन इतना सरल नहीं जो इतनी सफलता के साथ हमारी गति सुधार दे । प्रभु के नाम जप से हमारी गति सुधरती है क्योंकि विघ्न, विपत्ति और प्रतिकूलता दूर हो जाती है । गति सुधारने में जो भी बाधक तत्व है वह नाम जप से दूर हो जाते हैं ।

278. हृदय की गहराई से नाम जप का क्या फल होता है ?

जितनी बार हम प्रभु का नाम लेते हैं धीरे-धीरे वह नाम हमें गहराई तक लेकर जाता है । जितनी गहराई से नाम जप होने लगता है उतना ही उसका फल बढ़ता चला जाता है । हृदय की गहराई से जब नाम जप होने लगता है तो उसका फल अतुलनीय हो जाता है । ऐसे नाम जप के फल की तुलना कलियुग में किसी भी अन्य साधन के फल से कतई नहीं हो सकती ।

277. प्रभु का नाम लेकर कोई भी काम क्यों करना चाहिए ?

प्रभु श्री हनुमानजी ने सागर में छलांग बाद में लगाई , पहले प्रभु का नाम लिया । इस श्रीलीला से प्रभु श्री हनुमानजी बताना चाहते है कि कोई भी छोटे-से-छोटा या बड़े-से-बड़ा काम करने से पहले प्रभु का नाम लेकर ही उसे करना चाहिए । काम के दौरान भी नाम जप करना चाहिए जिससे सभी विघ्न और विपत्ति यां दूर हो सके ।

276. प्रभु नाम जप में क्या सामर्थ्य है ?

जो प्रभु का नाम जीवन में लेता है वह कभी नहीं मरता क्योंकि शारीरिक मृत्यु के बाद वह प्रभु के श्रीकमलचरणों में लीन हो जाता है । प्रभु का नाम अपने नाम जापक को प्रभु के श्रीधाम में प्रभु के श्रीकमलचरणों में पहुँचा देती है । यह सामर्थ्‍य कलियुग में प्रभु नाम जप में है और इतना सामर्थ्यवान होने पर भी प्रभु का नाम जप इतना सरल और सुगम साधन है ।

275. प्रत्‍येक श्वास पर नाम जप क्यों चलना चाहिए ?

हमें श्वास-श्वास से प्रभु का नाम जपना चाहिए क्योंकि पता नहीं आगे श्वास आएगी की नहीं । इसलिए कोई भी श्वास व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए । अंतिम श्वास पर नाम जप करने वाला जीव सीधे प्रभु के श्रीधाम जाता है और प्रभु के श्रीकमलचरणों में स्थान पा जाता है । हमारी कौन-सी श्वास अंतिम होगी इसका किसी को पता नहीं इसलिए शास्त्र और संत उपाय बताते हैं कि प्रत्‍येक श्वास पर नाम जप चलना चाहिए ।

274. कलियुग में किसका संचय करना चाहिए ?

जीवन में प्रभु नाम का ही संचय करना चाहिए । हम कलियुग में धन, संप त्ति , कीर्ति का संचय करते हैं जो मृत्यु   के बाद यहीं रह जाने वाली है । कलियुग में प्रभु नाम की संपत्ति का संचय करना चाहिए जो इहलोक में भी हमारा मंगल करेगी और मृत्यु   के बाद भी परलोक में भी हमारे साथ जाएगी और वहाँ भी हमारा मंगल करेगी । नाम जापक को मृत्यु   बेला पर नाम जप के कारण नर्क नहीं जाना पड़ता और वह सीधा प्रभु के श्रीधाम में पहुँच जाता है ।

273. क्या नाम जप से विघ्न और विपत्ति दूर होती है ?

प्रभु का नाम लेने से हमारी सभी विपत्तियाँ दूर हो जाती है । किसी विघ्न में सामर्थ्‍य नहीं की वह नाम जापक का अमंगल कर सके क्योंकि प्रभु का नाम एक रक्षा कवच की तरह काम करता है । प्रभु का नाम अपने जापक के विघ्न, अमंगल और विपत्तियों को दूर करके नाम जापक को सुरक्षित करता है । कोई भी विघ्न और विपत्ति प्रभु नाम के आगे टिक नहीं सकती ।

272. संसार सागर से पार कैसे हो सकते हैं ?

संसार सागर में कूदें तो प्रभु का नाम लेकर कूदें तो हमें कोई डूबो नहीं पाएगा और हम संसार सागर से पार हो जाएंगे । जैसे प्रभु श्री हनुमानजी ने प्रभु श्री रामजी का नाम लेकर सागर में छलांग लगाई और विघ्नों के बावजूद सागर को सफलता से पार किया । नाम का प्रभाव प्रभु श्री हनुमानजी ने जग जाहिर किया और सबको बताया कि नाम का आश्रय लेकर ही हम संसार सागर से पार हो सकते हैं ।

271. संत नाम जप के बारे में क्या कहते हैं ?

संत कहते हैं कि प्रभु को अपना बना लेना चाहिए क्योंकि प्रभु के रूप , नाम और गुणानुवाद की मस्ती अलौकिक है । इसमें भी सभी संत एकमत हैं कि प्रभु के नाम जप की महिमा का बखान वे तो कर ही नहीं सकते, यहाँ तक कहा गया है कि नाम की बड़ाई प्रभु भी नहीं कर सकते । प्रभु नाम की महिमा हर युग में रही है पर कलियुग में तो यह असीम है ।

270. सबसे मीठा साधन क्या है ?

हमारा मुँह मिठाई से नहीं अपितु प्रभु के नाम से मीठा होना चाहिए । नाम से मुँह मीठा होना सच्चा मीठा होना होता है । जो मिठास प्रभु के नाम में है वह कलियुग में अन्य किसी भी साधन में नहीं है । अन्य साधनों से कहीं ज्यादा प्रभु के नाम में मिठास है और नाम जप करके हमारी अंतरात्मा सबसे ज्यादा तृप्ति का अनुभव करती है । इसलिए ही नाम को संतों और भक्तों ने मीठा, मीठा और मीठा कहा है ।

269. नाम कैसे हमारी रक्षा और मंगल करता है ?

प्रभु का नाम लेने से दसों दिशाओं में मंगल होता है । प्रभु का नाम हमारे लिए रक्षा कवच का काम करता है । जैसे रक्षा कवच ऊपर से, नीचे से, आगे से, पीछे से, दाएं से, बाएं से हमारी रक्षा करता है वैसे ही प्रभु का नाम भी हमारी सभी दिशाओं से रक्षा करता है और हमारा मंगल करता है । कलियुग में नाम से बड़ा रक्षा कवच और कुछ भी नहीं है ।

268. कलियुग का प्रधान साधन क्या है ?

भक्ति अर्जित करने के लिए हमें जीवन में पुरुषार्थ करना पड़ता है जैसे सत्संग , कथा सुनना , नाम जप करना , भजन-कीर्तन करना और पूजा करना । ऐसा नहीं करने पर हमारा मानव जीवन ही व्यर्थ चला जाता है । इसमें भी कलियुग में नाम जप सबसे प्रधान साधन है जो निश्चित हमारा मंगल करता है । नाम जप में कोई नियम प्रभु ने नहीं लगाया है इसलिए कोई भी, कभी भी, किसी भी अवस्था में नाम जप कर सकता है ।

267. प्रभु का नाम जप कौन कर पाता है ?

जब तक प्रभु की कृपा नहीं होगी तब तक हमारी जिह्वा पर प्रभु का नाम नहीं आएगा । अगर हम जीवन में माला पर नियमित संख्या का जप कर पाते हैं और अगर हम मानसिक जप भी कर पाते है तो यह प्रभु की असीम कृपा और दया माननी चाहिए । यह सिद्धांत है कि कलियुग में जिसका मंगल होना है वही भाग्यवान प्रभु के नाम का जप कर पा ता है ।

266. नाम जप में कितना सुख है ?

इतना सुख अन्य किसी चीज में नहीं मिलता जितना सुख प्रभु के नाम जप में मिलता है । ऐसा सभी नाम जापक, संतों और भक्तों का अनुभव रहा है । नाम जप में इतना सुख है कि साधक एक अवस्था के बाद लगातार मानसिक जप करता ही रहता है । अगर नाम जप में सुख नहीं होता तो सभी शास्त्र, संत और भक्त कलियुग में इसकी महिमा एकमत से नहीं गाते ।

265. सभी जगह मंगल करने का सामर्थ्य किसमें है ?

प्रभु का नाम ही है जो त्रिभुवन में सभी जगह मंगल करता है । कलियुग में नाम की महिमा इतनी है कि पूरे त्रिभुवन में और जीव का इहलोक और परलोक दोनों जगह मंगल करने का सामर्थ्‍य नाम में है । इसलिए ही प्रभु के नाम को संतों ने “नाम भगवान” कहा है क्योंकि प्रभु ने अपनी समस्त शक्तियों को अपने नाम में स्‍थापित कर दिया है ।

264. दुःख और क्लेश मिटाने का उपाय क्या है ?

जब भी मन दुःखी हो या मन में कोई क्लेश हो तो प्रभु का नाम लेना चाहिए । दुःख या जीवन के क्लेश को मिटाने का सबसे सटीक उपाय प्रभु का नाम जप है । कलियुग में नाम जप की इतनी महिमा है कि नाम जापक के कष्‍ट और दुःख को प्रभु रहने नहीं देते । दुःख की बेला पर प्रभु नाम जप करना ही चाहिए । नाम जप दुःख निवृत्ति का सबसे सफल उपाय है ।

263. कैसी पुकार पर प्रभु आते हैं ?

प्रभु आज भी आधे नाम पर आते हैं बस कोई श्री गजेंद्रजी की तरह पुकारने वाला चाहिए । प्रभु को बुलाने के लिए प्रभु का पूरा नाम उच्चारण करने की भी आ वश्‍यकता नहीं है । प्रभु अंतर्यामी हैं, स र्वत्र हैं और आधे नाम पर ही हमारा मंगल करने आ जाते है । बस जरूरत है भाव से पुकार की, शरणागति लेकर पुकार की और प्रेम भरी पुकार की ।

262. जीवन में क्या नियम बनाना चाहिए ?

कुछ भी करने से पहले प्रभु के नाम का आश्रय लेना चाहिए । प्रभु के नाम को जीवन का आधार बनाकर रखना चाहिए । हर कार्य से पहले प्रभु का मंगलमय नाम लेकर प्रभु को याद करके वह कार्य करना चाहिए । चाहे कार्य बड़ा हो या छोटा प्रभु का नाम लेकर ही उसका आरंभ करना चाहिए । यह नियम जीवन में जरूर बनाना चाहिए ।

261. नाम जप में सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है ?

हमें एक-एक श्वास पर प्रभु का नाम रटना चाहिए । जीवन में एक अवस्था ऐसी आनी चाहिए जब मानसिक नाम जप चलता ही रहे । माला से जप की संख्या पूरी करना एक उपलब्धि है पर लगातार मानसिक जप मन-ही-मन चलाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है । इस बड़ी उपलब्धि तक पहुँचने का प्रयास हमें करना चाहिए ।