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Showing posts from October, 2024

321. सबसे प्रधान और सरल साधन कौन-सा है ?

प्रभु के नाम में प्रभु का सारा माधुर्य , सारा ऐश्वर्य और समस्त भगवत्ता भरी होती है । इसलिए ही प्रभु नाम की महिमा से सभी शास्त्र भरे पड़े हैं और सभी ऋषियों, संतों और भक्तों ने एक स्वर से कलियुग में प्रभु नाम जप का प्रतिपादन किया है । प्रभु का नाम जप बहुत मीठा, प्रबल और मंगल करने वाला साधन है । कलियुग में प्रभु नाम जप ही सबसे प्रधान और सरल साधन है ।

320. नाम जप में कितना भरोसा होना चाहिए ?

प्रभु का नाम पूरे भरोसे के साथ जपना चाहिए । प्रभु का नाम दृढ़ भावना और दृढ़ भरोसे से जपने से वह नामी प्रभु का सानिध्य हमें प्रदान करता है और हमारा परम मंगल और कल्याण करता है । प्रभु नाम में जितनी आस्था होगी उतना ही फल वह हमें देगा । इसलिए नाम जप पूरे भरोसे के साथ करना चाहिए । नाम जप में इतना भरोसा होना चाहिए कि हमारा नाम जप नामी प्रभु को हमारे सामने एक-न-एक दिन प्रकट करके ही रहेगा ।

319. नाम जप क्या करता है ?

प्रभु का नाम दसों दिशाओं से हमारा मंगल करता है । प्रभु का नाम एक रक्षा कवच की तरह काम करता है और सभी तरफ से हमारी रक्षा करता है । जब जीवन में नाम जप होने लग जाता है तो हमारे संचित पाप कटते जाते हैं और हमारा मंगल और कल्याण होना आरंभ हो जाता है । नाम जप की विशेष महिमा कलियुग में है जो अन्य किसी भी साधन में नहीं है ।

318. क्या नाम जप से हमारा कल्याण होगा ?

एक प्रभु के नाम का ही आश्रय जीवन में ले लेना चाहिए तो उससे हमारा कल्याण हो जाएगा । कलियुग में हमारा परम मंगल, कल्याण और उद्धार करने का सामर्थ्‍य एकमात्र प्रभु के नाम जप में है । इसलिए ही नाम जप की महिमा से सभी शास्त्र भरे मिलेंगे । इसलिए ही नाम जप का प्रतिपादन सभी ऋषियों, संतों और भक्तों ने एक स्वर से किया है ।

317. प्रभु और प्रभु के नाम में क्या समानता है ?

प्रभु के समकक्ष प्रभु का नाम है । संतों ने तो विनोद में यहाँ तक कह दिया कि प्रभु से भी बड़ा प्रभु का नाम है । सभी शास्त्रों ने, ऋषियों ने, संतों ने, भक्तों ने नाम जप की महिमा का बखान किया है और नाम को नामी प्रभु के बराबर ही माना है । सभी एकमत हैं कि नाम और नामी प्रभु में कोई भी भेद नहीं है । जो शक्तियां और सामर्थ्‍य प्रभु का है वही प्रभु ने अपने नाम में स्थापित कर दिया है ।

316. नाम का प्रभाव क्या है ?

प्रभु श्री रामजी ने जिस सागर को सेतु बनाकर पार किया , प्रभु श्री हनुमानजी उसी सागर को श्रीराम नाम लेकर लांघ गए । नाम का प्रभाव जग जाहिर करने के लिए प्रभु श्री हनुमानजी ने यह श्रीलीला की । प्रभु के नाम के एक जयघोष के साथ उन्‍होंने सौ योजन का समुद्र लांघ दिया जिसके लिए प्रभु को सेतु का निर्माण करना पड़ा ।

315. नाम की महिमा क्या है ?

गोस्वामी श्री तुलसीदासजी श्री रामचरितमानसजी में कहते हैं कि वे प्रभु नाम की बड़ाई कहाँ तक करें क्योंकि प्रभु श्री रामजी भी अपने श्रीराम नाम की बड़ाई नहीं गा सकते । प्रभु नाम की इतनी बड़ी महिमा है । दूसरों की बात तो छोड़ दें, शास्त्रों, ऋषियों, संतों और भक्तों की बात भी छोड़ दें यहाँ तक कि प्रभु स्वयं भी अपने नाम की बड़ाई और महिमा का गान नहीं कर सकते । इससे ही पता चलता है कि नाम की महिमा कितनी बड़ी है ।

314. कलियुग में सबकी एकमत राय क्या है ?

सभी शास्त्रों ने , सभी संतों ने और सभी भक्तों ने एकमत से कलियुग में प्रभु नाम जपने की महिमा गाई है । इससे ही पता चलता है कि नाम जप की महिमा के विषय में कोई मतभेद किसी भी शास्त्र, पंथ, संत और भक्त में नहीं है । सभी ने एकमत से कलियुग में प्रभु नाम जप का प्रतिपादन किया है कि इससे प्रबल साधन कलियुग में और कोई भी नहीं है ।

313. नाम ने कितनों का उद्धार किया है ?

कलियुग में प्रभु ने अपनी समस्त शक्तियां अपने नाम में रख दी हैं । जो काम प्रभु कर सकते हैं वही काम प्रभु का नाम भी कर सकता है । इसलिए ही संतों और भक्तों ने नाम जप को परम साधन माना है जो सबसे सरल और सुलभ है । प्रभु ने अपने अवतार काल में जितनों का उद्धार किया है, प्रभु के स्वधाम जाने के बाद उससे कोटि-कोटि गुना ज्यादा लोगों का उद्धार प्रभु के नाम ने किया है ।

312. नाम जप से कलियुग में क्या मिलेगा ?

प्रभु का नाम अनंत सुख का धाम है । नाम जप में जो सुख और आनंद है वह कलियुग में अन्य किसी भी साधन में नहीं है । हर युग के अपने साधन होते हैं जो जीव को प्रिय लगते हैं और जीव का मंगल और कल्याण करते हैं । कलियुग में सबसे प्रिय लगाने वाला, मंगल और कल्याण करने वाला एवं सुख और आनंद देने वाला साधन प्रभु का नाम जप है ।

311. नाम जप की संख्या और तन्मयता बढ़ने से क्या होता है ?

प्रभु का नाम जपने से जीव को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह प्रभु का सानिध्य प्राप्त कर सके । नाम नामी प्रभु को हमारे सामने प्रकट करने का सामर्थ्‍य रखता है । कलियुग में जितना नाम जप अधिक होगा उतनी प्रभु की अनुकूलता हमें मिलेगी, प्रभु का सानिध्य हमें मिलेगा और परमानंद हमें मिलेगा । नाम जप की संख्या और तन्मयता जितनी बढ़ती जाएगी प्रभु की अनुभूति उतनी हमें होती जाएगी ।

310. नाम और नामी प्रभु में क्या समानता है ?

प्रभु का नाम भी जीव पर कृपा करता है । इसलिए ही नाम को संतों ने प्रेम से “नाम भगवान” कह कर संबोधित किया है । जो परम सर्वसामर्थ्यवान प्रभु की सामर्थ्य है वही प्रभु के नाम की भी है क्योंकि प्रभु ने अपनी सभी शक्तियों को अपने नाम में स्थापित किया है । जितनी कृपा प्रभु करते हैं उतनी कृपा प्रभु का नाम भी करता है । फिर कलियुग में तो नाम की विशेष महिमा है क्योंकि कलियुग का युग धर्म ही प्रभु का नाम जप है ।

309. प्रभु नाम का बल क्या है ?

प्रभु के भरोसे का बल लेकर और प्रभु के नाम का बल लेकर हमें अपना जीवन जीना चाहिए । प्रभु नाम का बल इतना होता है कि जगत में उस जीव का अमंगल कोई भी नहीं कर सकता है । नाम जापक के साथ प्रभु का रक्षा कवच साथ-साथ चलता है । कोई भी उस नाम जापक का बाल भी बाँका नहीं कर सकता । नाम जापक का मंगल और कल्याण ही होता चला जाता है ।

308. सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है ?

प्रभु नाम की कृपा से हमें जो मिलेगा वह कभी खत्म होने वाला नहीं है । नाम जप की कमाई अखंड रूप से हमारे साथ रहने वाली है । न भाई-भाई में इसका बंटवारा होता है, न कोई चोर इसे चुरा सकता है और न ही सरकार इस कमाई पर कर लगा सकती है । प्रभु नाम जापक की वंदना सभी शास्त्र और देवतागण भी करते हैं क्योंकि यह उपलब्धि सबसे बड़ी है ।

307. कलियुग का धर्म क्या है ?

प्रभु नाम का आश्रय लेना कलियुग का धर्म है । कलियुग में प्रभु नाम से श्रेष्ठ कोई साधन नहीं है । कलियुग में प्रभु नाम लेना ही भक्ति है , प्रभु का गुणगान करना ही भक्ति है और प्रभु की चर्चा सुनना ही भक्ति है । इन सबमें भी कलियुग में नाम जप की महिमा सबसे बड़ी है । नाम जप की समानता करने वाला कलियुग में कोई भी अन्य साधन नहीं है ।

306. नाम जप से संत और भक्त किस अवस्था तक पहुँचते हैं ?

अपनी श्वासों की माला पर प्रभु का नाम पिरोना चाहिए । यह वह अवस्था है जहाँ संत और भक्त पहुँचते हैं कि उनकी श्वास पर नाम जप होने लगता है और कोई भी श्वास नाम जप के बिना खाली नहीं जाती । यह वह अवस्था है जब निरंतर नाम जप के प्रभाव से नामी प्रभु का परम सानिध्य उन्हें जीवन काल में ही प्राप्त हो जाता है और अंतिम बेला पर प्रभु के पार्षद उन्हें प्रभु के श्रीधाम ले जाते हैं ।

305. भक्त और संत जगत मंगल के लिए क्या करते हैं ?

भक्त और संत प्रभु के नाम की खुशबू को जगत में फैला देते हैं । वे स्‍वयं नाम जप करते हैं, उसके प्रभाव को जानते है और अपने जीवन में आजमाते हैं और फिर नाम जप की प्रेरणा जगत मंगल के लिए सबको देते हैं । वे जानते हैं कि जितना जगत का मंगल नाम जप से संभव है उतना और किसी साधन से कलियुग में संभव नहीं है ।

304. कलियुग में सबसे बड़ा धन कौन-सा है ?

हमने आज तक जीवन में जितना भी संसारी धन कमाया है उससे भी अनंत-अनंत गुना ज्यादा जिन्होंने भी पूर्व में धन कमाया है उनका आज नाम भी कोई नहीं जानता । पर नाम धन और भक्ति की कमाई जिसने की है उन भक्तों को प्रभु ने जगत में सदैव के लिए अमर कर दिया । इसलिए संत और भक्त कलियुग में नाम जप पर बहुत जोर देते हैं । ऐसे भी संत हुए हैं जिन्होंने नाम जप में करोड़ो और अरबों नाम का जप अपने जीवनकाल में किया है ।

303. नाम क्या चमत्कार करता है ?

पत्थर जड़ता का सूचक हैं । प्रभु नाम से जड़ वस्तु भी तैर गई । प्रभु नाम की कितनी भारी महिमा है । जब श्री रामावतार में सेतुबंधन हुआ तो प्रभु श्री हनुमानजी, जो नाम का प्रभाव सबसे ज्यादा जानते थे, वे पत्थर पर प्रभु का नाम लिखते गए और वानर उसे प्रभु के नाम का जयघोष कर सागर में फें कते गए । फिर वह हुआ जो चमत्कार था कि डूबोने वाले पत्थर तैरने वाले बन गए ।

302. नाम का सामर्थ्‍य क्या है ?

जिन प्रभु के नाम से सेतुबंधन के समय पत्थर तैरे उन प्रभु के नाम से जीव का तरना तो और भी आसान है । जब प्रभु के नाम से जड़ पत्थर तैरे तो चेतन तत्व का मंगल होने में कोई संदेह ही नहीं है । शास्त्र और संत कहते हैं कि प्रभु के नाम में जड़ और चेतन दोनों का मंगल करने का सामर्थ्‍य है । नाम के समान केवल नाम ही है और कलियुग में तो विशेषकर इसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती ।

301. हमारा मंगल और कल्याण कैसे होगा ?

केवल प्रभु के बारे में श्रवण करें । सुनते-सुनते प्रभु के नाम में , रूप में , गुण में आसक्ति हो जाएगी और प्रभु प्राप्ति की लालसा जीवन में जग जाएगी । जब हम सत्संग में प्रभु नाम जप के प्रभाव को सुनते हैं तो हमारी समझ में आता है कि इतना सरल और इतना प्रभावी प्रभु प्राप्ति का साधन कलियुग में दूसरा कोई भी नहीं है । इससे नाम जप में हमारी आस्था दृढ़ होती है जो हमारा मंगल और कल्याण करती है ।

300. संत अपने अनुभव से नाम जप के विषय में क्या कहते हैं ?

प्रभु नाम का दीपक अपनी जिह्वा पर रख लेना चाहिए । इससे भीतर और बाहर दोनों तरफ प्रकाश हो जाता है । यह बात गोस्वामी श्री तुलसीदासजी अपने अनुभव से कहते हैं । नाम जप का प्रभाव सभी संतों और भक्तों ने कलियुग में अपने जीवन में अनुभव किया है और ऐसा करने का जनसाधारण को उपदेश दिया है । अपने अनुभव से संतों और भक्तों को पता है कि कलियुग में नाम जप की महिमा क्या है ।

299. भवसागर पार करने का कलियुग का साधन क्या है ?

प्रभु का नाम एक जहाज के समान है । जो उस पर चढ़ जाता है वह भवसागर से पार उतर जाता है । संत प्रभु के नाम को “नाम जहाज” कहते हैं जो हमें भवसागर से पार करने के लिए बिलकुल तैयार खड़ा है पर हमारा दुर्भाग्य है कि हम उसमें नहीं बैठते । नाम जप से प्रभावी साधन कलियुग में कुछ भी नहीं है इसलिए कलियुग के संत और भक्त नित्य निरंतर प्रभु का नाम जप ही करते हैं और इसका ही उपदेश सबको देते हैं ।

298. नाम जप में हमारी रुचि क्यों होनी चाहिए ?

जितना आनंद प्रभु के नाम में है उतना कहीं अन्यत्र नहीं है फिर भी संसारी को प्रभु नाम लेना बोझ-सा लगता है । नाम जप में कोई खर्चा नहीं होता, प्रभु के अनंत नाम हैं और नाम जप के लिए कोई शर्त या नियम नहीं है फिर भी हमारी रु चि नाम जप में नहीं होती , यह हमारा दुर्भाग्य है । जो फल अन्य युगों में तपस्या, कर्मकांड, पूजा आदि से मिलता था वही फल कलियुग में केवल नाम जप से संभव है ।

297. कलियुग में सच्चा भाग्यवान कौन है ?

जिसका मन प्रभु के नाम , रूप , सद्गुण का आस्वादन करने में लग गया उसका मन फिर कभी संसार में नहीं लग सकता । यह भक्ति की कसौटी है । भक्ति के अंतर्गत जिसने प्रभु के नाम जप को पकड़ लिया वह सबसे बड़ा भाग्यवान है । कलियुग में भक्ति के अंतर्गत नाम जप की प्रधानता है और इसका प्रतिपादन हर शास्त्र और संत द्वारा किया गया है ।

296. क्या नाम जप में कोई शर्त या नियम है ?

प्रभु का नाम कैसे भी जपें वह कल्याण-ही-कल्याण करेगा । जैसे उपजाऊ धरती में बीज उलटा, सुलटा, सीधा, टेढ़ा कैसे भी डाले वह अंकुरित होगा ही वैसे ही कलियुग में प्रभु का नाम जप कैसे भी किया जाए वह फलीभूत होगा ही । कलियुग में विकारों को देखते हुए प्रभु ने नाम जप में कोई शर्त नहीं लगाई है । नाम जप का कोई नियम नहीं है, नाम कभी भी, कैसे भी, किसी भी अवस्था में लिया जा सकता है ।

295. कलियुग में सबसे बड़ी कमाई क्या है ?

हमें प्रभु के नाम , रूप और श्रीलीला की कमाई जीवन में करनी चाहिए, यह कलियुग की सबसे बड़ी कमाई है । इसमें भी प्रभु का नाम जप जितनी मात्र में हो सके हमें उठते, बैठते, चलते, फिरते करने का अभ्यास करना चाहिए । भक्ति के अंतर्गत नाम जप कलियुग का प्रधान साधन है । जब हम प्रभु के नाम को पुकारते हैं तो प्रभु तत्काल वह पुकार सुनते हैं ।

294. क्या सत्संग नाम जप में हमारी आस्था दृढ़ करता है ?

सत्संग वही जो विषय छुड़ाए और प्रभु का नाम जपाए । सत्संग का सच्चा प्रभाव कलियुग में यही है कि हमारी प्रभु नाम जप में सच्ची आस्था हो जाए । सत्संग हमें बताता है कि कलियुग में भक्ति के अंतर्गत नाम जप एक बहुत ही प्रभावी साधन है जिससे प्रभु बहुत जल्दी रीझ जाते हैं और प्रसन्न होते हैं ।

293. क्या दुःख में नाम जप अधिक होता है ?

एक प्रसिद्ध दोहे में संत कहते हैं कि उस सुख के माथे पत्थर पड़े जो प्रभु का नाम ही हृदय से भुला देता है और उस दुःख की बलिहारी है जो पल-पल प्रभु का नाम रटा देता है । दुःख की बेला पर प्रभु की याद अधिक आती है क्योंकि हम अपना पुरुषार्थ हार चूके होते हैं और दुःख में नाम जप भी अधिक प्रभावी रूप से होता है । इसलिए संत दुःख की बलिहारी लेते हैं जो प्रभु की स्मृति और नाम जप करवा देता है ।

292. प्रभु के नाम रटन से क्या होगा ?

नाम रटन जप बन जाता है , जप फिर पुकार बन जाता है और पुकार प्रभु तक तुरंत पहुँचती है । यह क्रम है जो शास्त्रों और संतों ने बताया है कि नाम की रटन जप बनती है, जप फिर एक पुकार बन जाती है और पुकार तत्काल प्रभु तक पहुँच जाती है । पर क्रम का पहला पायदान है कि शुरूआत में मन-ही-मन प्रभु का नाम रटन चलना चाहिए ।    

291. कलियुग के भक्तों ने नाम जप में क्या ऊँचाई प्राप्त की है ?

संत कहते हैं कि भक्त का प्राणायाम यह होता है कि जब वह श्वास लेता है तो उस श्वास के साथ प्रभु नाम लेता है । दूसरा अर्थ यह है कि जब भी प्रभु नाम लेता है तभी वह श्वास लेता है यानी बिना प्रभु नाम के कोई श्वास नहीं लेता । यह एक बहुत ही ऊँ‍‍ची अवस्था है पर आज कलियुग में भी ऐसे भक्त हैं जो यहाँ तक पहुँचे हैं ।