Skip to main content

Posts

Showing posts from November, 2024

358. प्रभु नाम की महिमा कितनी है ?

प्रभु भी अपने नाम की महिमा नहीं गा सकते । प्रभु के नाम का महत्व प्रभु भी नहीं बता सकते । प्रभु नाम की इतनी विशाल महिमा है । श्री रामचरितमानसजी में गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने लिखा है कि हम तो क्या प्रभु भी चाहें तो अप ने नाम का सामर्थ्‍य और अपने नाम की महिमा का बखान नहीं कर सकते । फिर शास्त्र, भक्त, संत और महात्मा तो कैसे कर सकते हैं । इसलिए शास्त्र, भक्त, संत और महात्मा जो नाम की महिमा बताते हैं वह तो ऐसा ही है जैसे सागरदेव का अंजुलि भर जल ले लिया जाए ।

357. निष्काम होकर नाम जप करने से क्या होता है ?

निश्चित माने कि आधे नाम पर भगवान आते हैं पर वह आधा नाम अभिलाषा शून्य होकर पुकारना होता है यानी वह पुकार केवल प्रभु के लिए ही होनी चाहिए । जब हमारी पुकार अभिलाषा शून्य होती है तो प्रभु सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और आधे नाम पर हमारा मंगल, कल्याण और उद्धार करने चले आते हैं । अगर नाम जप किसी सात्विक अभिलाषा से हो ता है तो वह अभिलाषा पूर्ण होती है पर अगर वह निष्काम हो ता है तो प्रभु को हमें कृतार्थ करने आना पड़ता है ।

356. प्रभु के नाम का आश्रय लेने से क्या होता है ?

प्रभु के नाम का आश्रय लेने से हमें जीवन में भक्ति करने का उद्देश्य मिलता है । नाम जप भक्ति के अंतर्गत आता है इसलिए नाम जप करने से भक्ति करने का जीवन में मन होता है और भक्ति को बल मिलता है । नाम जप से हमारी भक्ति प्रबल होती है और प्रभु के लिए प्रेम भाव उदित होता है । नाम जप की महिमा कलियुग में इतनी है कि वह हमें बड़ी सुगमता से भक्ति में सिद्ध कर देता है ।

355. सुबह जागते ही सर्वप्रथम क्या करना चाहिए ?

प्रभु का नाम अगर हमने जागते ही ले लिया तो उस दिन हमारा जागना सार्थक हो गया । ऐसा शास्त्र और संत कहते हैं और हमसे आग्रह करते हैं कि सुबह उठते ही सर्वप्रथम कार्य प्रभु का नाम जप ही होना चाहिए । प्रभु ने कृपा करने हमें एक और दिन दिया इसके लिए प्रभु का धन्यवाद करना चाहिए और प्रभु के नाम का स्मरण करना चाहिए । सुबह लिया प्रभु का नाम एक रक्षा कवच की तरह पूरे दिन हमारी रक्षा करता है ।

354. जो वाणी प्रभु का नाम जप नहीं करती शास्त्रों में उनके लिए क्या कहा गया है ?

प्रभु नाम के बिना हमारी वाणी कभी भी शोभा नहीं पाती । हमारी वाणी की शोभा प्रभु के नाम जप के कारण ही है, ऐसा शास्त्र और संत मत है । इसलिए हमें अपनी वाणी को व्यर्थ की संसार की वार्ता में नहीं लगाना चाहिए और उसे प्रभु के नाम जप में लगाना चाहिए । वाणी से नाम जप की कमाई ही हमारे अंत में काम आने वाली कमाई है । जो वाणी प्रभु का नाम जप नहीं करती उसे शास्त्रों में मेंढक की टर्र-टर्र करने वाली वाणी की संज्ञा दी गई है ।

353. कलियुग में सफलता का उपाय क्या है ?

मन और मुख प्रभु के नाम से ही सदैव भरा हुआ होना चाहिए । हमारा मन भी प्रभु नाम का आश्रय ले और मुख भी प्रभु नाम का जप निरंतर करे तब कलियुग में हमारी जीत पक्की है । कलियुग में वही सफल हो सकता है जो हृदय से प्रभु नाम का आश्रय लेता है और अपने मुख से प्रभु नाम को जपता है । कलियुग में सफल होने की यही दो शर्तें हैं जिनको पूर्ण करके बहुत सारे संत और भक्त कलियुग में भक्ति और प्रभु प्राप्ति में सफल हुए हैं ।

352. कलियुग में सफल होने की दों मुख्य बातें क्या है ?

मुख में प्रभु का नाम और हृदय में प्रभु का भरोसा सदैव रखना चाहिए । अगर हम इन दों बातों में सफल हो जाते हैं तो कलियुग की बाजी हम जीत जाते हैं । कलियुग बहुत ही प्रतिकूल युग है जहाँ पापाचरण की भरमार है ऐसे में प्रभु का नाम हमें कलियुग के विकारों और दोषों से बचाता है । प्रभु का नाम अपने नामी प्रभु में हमारा भरोसा सुदृढ़ कर देता है जिसके कारण हमें प्रभु का सानिध्य हमेशा मिलता रहता है ।

351. जीवन में उत्थान का कलियुग में क्या साधन है ?

अगर हम भी जीवन में विपत्ति नहीं चाहते और जीवन में सदैव उत्थान चाहते हैं तो हमें प्रभु का नाम सदैव अपने मुख में रखना चाहिए । यह एक शाश्‍वत सिद्धांत है कि प्रभु का मंगलमय नाम हमें जीवन की प्रतिकूल ताओं और विपत्तियों से बचाता है और हमारा जीवन में उत्थान करता है । प्रतिकूलता ओं और विपत्तियों से बचने का और जीवन में उत्थान का प्रभु नाम जप से सरल और सुलभ साधन कलियुग में अन्य कुछ भी नहीं है ।

350. हमारे मुख से सदैव क्या होना चाहिए ?

जब प्रभु श्री हनुमानजी लंका जा रहे थे तो उन्होंने प्रभु की मुद्रिका अपने श्रीमुख में रखी तो किसी ने पूछा कि क्या मुद्रिका मुख में रखने की चीज है । प्रभु श्री हनुमानजी ने बहुत मार्मिक उत्तर दिया कि मुद्रिका में जो श्रीराम नाम अंकित है वह नाम तो सदैव मुख में ही रखने योग्य है इसलिए उन्होंने श्रीराम नाम अंकित मुद्रिका को अपने श्रीमुख में ही स्थान दिया है । तात्पर्य यह है कि प्रभु का नाम सदैव हमारे मुख में होना ही चाहिए ।

349. कलियुग में नाम जप से क्या होता है ?

प्रभु नाम का उच्चारण कलियुग के समस्त दोषों को धो देता है । नाम जप कलियुग में हमें भीतर से पवित्र करता है, हमारे दोषों और विकारों को मिटाता है और हमें प्रभु मिलन के लिए उपयुक्त बनाता है । नाम जप की इसलिए ही कलियुग में इतनी बड़ी महिमा है क्योंकि यह सभी प्रतिकूलता ओं से हमें मुक्ति दिलाकर हमें प्रभु साक्षात्कार के लिए प्रस्तुत कर देता है । नाम जप के प्रभाव से बहुत सारे संतों और भक्तों को कलियुग में भी प्रभु के दर्शन हुए हैं ।

348. नाम जप प्रभु के लिए पुकार कैसे बनाती है ?

हमारी श्वासें श्वास नहीं बल्कि प्रभु पुकार बन जानी चाहिए और यह तभी संभव होता है जब श्वासों पर प्रभु नाम की माला चलना प्रारंभ हो जाए । यह एक बहुत ऊँ‍‍ची अवस्था है पर कलियुग में भी बहुत सारे संत और भक्त हुए हैं जो वहाँ तक पहुँचे हैं । कलियुग में नाम जापक ने अपनी श्वास को नाम जप से मिलाकर नाम जप किया है और उनकी श्वासों में प्रभु नाम की माला चलना प्रारंभ हो गई और प्रभु का साक्षात्कार उन्हें जीवन में इस कारण हुआ ।

347. कलियुग का सबसे सुलभ साधन क्या है ?

जिह्वा से प्रभु का नाम लेने की आदत डालें , कान से प्रभु का गुणानुवाद सुनने की आदत डालें और हाथों से प्रभु की सेवा करने की आदत डालें । इन तीनों में भी प्रभु नाम जप की जिह्वा को आदत डालना सबसे अहम है । प्रभु ने दया और कृपा करते हुए अपने नाम जप में कोई भी नियम नहीं लगाया है इसलिए कलियुग में प्रभु का नाम जप सबसे सरल और सुलभ साधन है ।

346. कलियुग में सबसे भाग्यवान कौन है ?

प्रभु के नाम को जीवन में ग्रहण करना चाहिए , जीवन में धारण करना चाहिए । कलियुग में इससे सुलभ और कोई साधन नहीं जिससे हम प्रभु तक पहुँच सकते हैं । कलियुग में प्रभु तक पहुँचने का प्रभु का नाम ही एकमात्र आधार है जिसको सभी शास्त्रों और संतों ने एकमत से स्वीकार किया है । जिसने कलियुग में अपने जीवन में प्रभु का नाम धारण कर लिया उससे बड़ा भाग्यवान और कोई नहीं ।

345. कलियुग में प्रभु का नाम क्यों लेना चाहिए ?

कहते , सुनते , गुनगुनाते , रटते , जपते और गाते , कैसे भी हो प्रभु के नाम को जीवन में पकड़ कर रखना चाहिए । प्रभु के नाम को जीवन में पकड़ लिया तो प्रभु भी ह मारी पकड़ में आ जाएगे । एक संत ने प्रभु नाम की ऐसी व्याख्या की है कि कलियुग में प्रभु अपने नाम में ही छिपे हुए हैं । इसलिए अगर हमने प्रभु के नाम को विश्वास और श्रद्धा से पकड़ लिया तो प्रभु हमसे छिप नहीं पाएगे । इसलिए जैसे भी बन पड़े प्रभु का नाम जीवन में लेते रहना चाहिए ।

344. कलियुग में प्रभु नाम जप के लिए हमें सभी क्यों प्रेरित करते हैं ?

प्रभु का नाम जहाज स्वरूप है , जो उस पर चढ़ता है वह भवसागर से पार उतर जाता है । जैसे हम जहाज में बैठ जाते है तो हमें कोई परेशानी नहीं होती और जहाज हमें सागर से पार उतर देता है वैसे ही हम प्रभु के नाम जहाज में बैठ जाते हैं तो वह बिना परेशानी के हमें भवसागर से पार उतार देता है । इसलिए ही कलियुग में सभी शास्त्र और संत हमें प्रभु के नाम जप के लिए प्रेरित करते हैं ।

343. कलियुग में प्रभु प्राप्ति का सबसे बड़ा आधार क्या है ?

संसार के सभी सुखों को एक पलड़े में रख दें और सच्चे मन से लिए प्रभु के एक नाम का आनंद दूसरे पलड़े में रख दें तो प्रभु नामरूपी पलड़ा सदैव भारी रहेगा । यह शाश्‍वत सिद्धांत है कि प्रभु का नाम जप संसार के सभी सुखों पर सदैव भारी पड़ेगा । इसलिए ही कलियुग में प्रभु नाम जप कि इतनी महिमा है और सभी शास्त्र और संत इसका प्रतिपादन एक स्वर से करते हैं कि कलियुग में नाम जप प्रभु प्राप्ति का सबसे बड़ा आधार है ।

342. कलियुग में प्रभु प्राप्ति का सबसे सुलभ और सरल साधन क्या है ?

प्रभु की कथा में अनुराग हो जाए , प्रभु का नाम और कीर्तन प्रिय लगने लगे तभी मानना चाहिए कि जीवन में प्रभु की सच्ची कृपा हुई है । कलियुग में प्रभु की भक्ति के लिए कथा, कीर्तन और नाम जप मुख्य साधन हैं । इसमें भी भक्ति के अंतर्गत प्रभु का नाम जप कलियुग का सबसे सुलभ और सरल साधन है प्रभु की प्राप्ति का । कलियुग में सभी संतों और महात्माओं ने प्रभु प्राप्ति के लिए नाम जप का ही सहारा लिया है ।

341. क्या प्रभु का नाम लेने वाला कभी भवसागर में डूब सकता है ?

प्रभु का नाम लेने वाला कभी नहीं डूब सकता । श्री भक्तमाल में कथा आती है कि एक भक्त ने प्रभु का नाम लेकर श्री जगन्नाथपुरीजी के सागर में छलांग लगा दी । प्रभु दौड़कर आए और उसे बचाया और उसे अपने महल में लाकर उसकी सात दिन सेवा की । फिर प्रभु ने कहा कि अब वापस जाओ । भक्त ने वापस जाने से यह कहकर मना किया कि अब आप मिल गए तो अब वापस संसार में क्यों भेज रहे हैं । प्रभु ने जो जवाब दिया वह बड़ा मार्मिक है । प्रभु ने कहा कि मैं इसलिए भेज रहा हूँ कि संसार वाले देखें कि तुम बच गए क्योंकि तुम मेरा नाम लेकर सागर में कूदे थे अन्यथा अपयश मेरे नाम का होगा । प्रभु ने फिर आगे कहा कि मेरा नाम लेने वाला तो भवसागर में भी नहीं डूबता तो फिर संसार के सागर में अगर तुम डूब गए तो मेरा बड़ा अपयश होगा ।

340. नाम जप का कलियुग में क्या सामर्थ्‍य है ?

नाम की कृपा से ही नामी यानी प्रभु प्रकट होंगे । कलियुग में प्रभु को अपने अंतःकरण में प्रकट करने का नाम जप ही एकमात्र उपा य है । नाम जप का प्रभाव हर युग में रहा है पर कलियुग में तो इसका विशेष प्रभाव है जो अन्य किसी भी साधन में नहीं है । अगर प्रभु ने प्रकट होकर किसी को कलियुग में दर्शन दिए हैं तो वह जरूर नाम जापक ही होगा क्योंकि प्रभु का नाम प्रभु को कलियुग में प्रकट करने का सामर्थ्‍य रखता है ।

339. संत और महात्मा प्रभु से क्या भाव निवेदन करते हैं ?

संत ऐसा भाव प्रभु से निवेदन करते हैं कि उनकी जिह्वा सदैव प्रभु नाम लेने के लिए ललचाती रहे । संत और महात्मा प्रभु से एक ही बात मांगते हैं कि नाम में उनकी आस्था और विश्वास इतनी प्रबल हो कि उनकी जिह्वा सदैव प्रभु के नाम जप में ही लगी रहे और नाम जप के लिए ही लालायित रहे । प्रभु के नाम जप की महिमा संतों और महात्माओं से ज्यादा कोई भी नहीं जानता क्योंकि उन्हें पता होता है कि नाम जप से सब कुछ सुलभ और संभव है ।

338. क्या श्वासों की माला पर रटना प्रारंभ हो जाता है ?

संत और भक्त सोते , जागते निरंतर प्रभु का नाम रटते रहते हैं । उन्हें माला की जरूरत नहीं होती क्योंकि वे प्रभु का नाम अपनी श्वासों की माला पर रटना प्रारंभ कर देते हैं । कलियुग में बहुत सारे संत और महात्मा हुए हैं जिन्‍होंने नाम जप का अपने जीवन में आधार लिया है और अरबों की संख्या में नाम जप किया है । ऐसा तभी संभव होता है जब श्वासों की माला पर रटना प्रारंभ हो जाता है ।

337. क्या नाम और नामी प्रभु में कोई भेद है ?

हम किसी को एक वृक्ष देना चाहते हैं तो उसे उसका बीज देते हैं । ऐसे ही हम प्रभु को पाना चाहते हैं तो बीजरूप में प्रभु का नाम ग्रहण करना चाहिए । यह दृ ष्टांत हमें बताता है कि जैसे बीज में वृक्ष छुपा हुआ होता है वैसे ही प्रभु के नाम में प्रभु और प्रभु की सभी शक्तियां छिपी   हुई होती हैं । जो प्रभु करते हैं वही प्रभु के नाम द्वारा भी करना पूर्णतया संभव है । इसलिए नाम और नामी प्रभु में कभी भेद नहीं करना चाहिए ।

336. क्या प्रभु आधे नाम के उच्चारण पर ही आ जाते हैं ?

विश्वास युक्त होकर हम प्रभु को पुकारें और प्रभु नहीं सुनें ऐसा कभी हो ही नहीं सकता । श्री गजेंद्रजी ने विश्वास से भरकर प्रभु को पुकारा और प्रभु आधे नाम के उच्चारण पर ही आ गए । नाम की महिमा इतनी है कि वह अपनी आर्त पुकार से नामी प्रभु को बुला लेता है । नाम जप में विश्वास होना चाहिए तो प्रभु आधे नाम के उच्चारण पर ही आ जाते हैं और पूरे नाम के उच्चारण की भी आ वश्‍यकता नहीं होती ।

335. नाम जप की ऊँ‍‍ची अवस्था क्या होती है ?

कभी माला नहीं हो तो सांसों की माला पर ही प्रभु का नाम जपना चाहिए । संतों की हाथों की माला छूट जाती है और वे सांसों की माला पर ही प्रभु का नाम जपना आरंभ कर देते हैं । यह एक बहुत ऊँ‍‍ची अवस्था होती है जहाँ संत और नाम जापक पहुँच जाते हैं जब सांसों की माला पर ही प्रभु का नाम जपना प्रारंभ   हो जाता है यानी कोई भी श्‍वास प्रभु नाम बिना खाली नहीं जाती ।

334. प्रभु नाम का माहात्म्य विलक्षण क्यों है ?

प्रभु नाम का माहात्म्य विलक्षण है । प्रभु की सारी शक्तियां और प्रभु का सारा प्रभाव प्रभु ने कृपा और दया करके अपने नाम में स्‍थापित कर दिया है जो कि कलियुग में सबकी पहुँच में और सबके लिए सुलभ है । शास्त्रों में ऐसे-ऐसे दृ ष्टांत भरे पड़े हैं कि नाम ने कैसे असंभव को भी संभव कर दिया और पूर्ण चमत्कार कर दिया । प्रभु के नाम ने कलियुग में अनेकों चमत्कार किए हैं इसलिए उसका माहात्म्य विलक्षण है ।

333. कलियुग में नाम जप का विशेष महत्व क्यों है ?

प्रभु नाम जप का हर युग में महत्व है पर कलियुग में तो इसका विशेष महत्व है । कलियुग में तो केवल और केवल प्रभु के नाम जप और नाम कीर्तन का ही मुख्य आधार है । कलियुग बड़ा प्रतिकूल युग है इसलिए प्रभु प्राप्ति का साधन इसमें बड़ा सरल और सुगम रखा गया है जो कि सभी की पहुँच में हो और सबके लिए करना संभव हो । कोई भी नियम प्रभु के नाम जप में नहीं लगाया गया है और कोई भी, कभी भी, किसी भी अवस्था में नाम जप कर सकता है ।

332. नाम जप की महिमा असीम क्यों है ?

प्रभु नाम जपने से जीवन के सभी उपद्रव शांत हो जाते हैं । यह एक शाश्‍वत सिद्धांत है कि नाम जप से सब कुछ संभव है और जीवन के बड़े-से-बड़े उपद्रव भी शांत हो जाते हैं । नाम जप की महिमा असीम है और किसी भी प्रतिकूलता में एक साधक को कलियुग में इसका बड़ा सहारा होता है । ऐसा कुछ भी नहीं जो नाम जप से संभव नहीं हो सके । नाम जापक से हर उपद्रव और प्रतिकूलता हार जाते हैं क्योंकि यह प्रभु का बनाया विधान है ।

331. प्रभु के प्रेमी नाम जप में कितने आसक्त होते हैं ?

श्रीगोपीजन कहती है कि अगर उनकी जिह्वा प्रभु नाम के अलावा कुछ भी उच्चारण करें तो वे अपनी जिह्वा पर हलाहल विष रख देंगी और अगर उनकी आँखें प्रभु के अलावा कुछ भी देखें तो वे उन आँखों को जला देंगी । प्रभु के स्मरण और जप में प्रभु के प्रेमी इतने आसक्त हो जाते हैं कि अपनी जिह्वा का उपयोग नाम जप के लिए ही करना चाहते हैं, अन्य किसी प्रयोजन के लिए नहीं । यह नाम जप की एक बहुत ऊँ‍‍ची स्थिति होती है ।

330. प्रभु के प्रेमियों की चेतना नाम से कैसे जुड़ जाती है ?

प्रभु के नाम का भगवती यशोदा माता पर क्या प्रभाव होता था यह एक दृ ष्टांत से पता चलता है । जब प्रभु श्री मथुराजी चले गए और प्रभु ने जब श्री उद्धवजी को भेजा तो जब श्री उद्धवजी नंदभवन पहुँचे भगवती यशोदा माता अर्ध चेतना में थी । जब भगवती यशोदा माता के कानों में कोई प्रभु का नाम उच्चारण करता था तो उन्हें चेतना आती थी फिर प्रभु को सामने नहीं देख कर उन्हें मूर्छा आ जाती थी । प्रभु के प्रेमियों को प्रभु का नाम इतना मीठा लगता है कि उनकी चेतना उससे जुड़ जाती है ।

329. कलियुग में क्या आधार होना चाहिए ?

जीवन में एकमात्र आधार प्रभु के नाम का ही होना चाहिए । कलियुग में तो प्रभु नाम का आधार सबसे बड़ा आधार होता है क्योंकि कलियुग नाम प्रधान युग है । नाम जप से कलियुग में वह प्राप्त होता है जो अन्य युगों में तपस्या, यज्ञ, पूजा से प्राप्त होता था । कलियुग का प्रधान साधन नाम जप ही है और सभी शास्त्रों, संतों ने इसका प्रतिपादन किया है ।

328. क्या प्रभु का नाम हमारी कामना की पूर्ति करता है ?

अन्य किसी कामना को न जोड़ते हुए प्रभु का नाम लेना जीवन में आरंभ करना चाहिए । किसी कामना को जोड़ने से वह कामना पूरी होगी और कोई कामना नहीं जोड़ने से प्रभु का नाम हमारा वैसे ही परम मंगल, कल्याण और उद्धार करेगा । नाम जपना प्रारंभ कर दें तो कोई भी सात्विक कामना पूर्ण हुए बिना नहीं रहेगी । यह नाम का प्रभाव है कि वह हमारी सभी जरूरतों की पूर्ति करता है ।

327. क्या प्रभु के नाम में प्रभु की सारी शक्तियां समाई है ?

प्रभु ने अपनी समग्र शक्तियां अपने नाम में रख दी हैं । प्रभु इतने दयालु और कृपालु हैं कि अपनी पूरी शक्तियां अपने नाम में रख दी हैं । इसका दूसरा अर्थ है कि जो कार्य प्रभु कर सकते हैं वही कार्य प्रभु का मंगलमय नाम भी कर सकता है । कलियुग में प्रभु के नाम ने अनेकों कार्य किए हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं । सभी शक्तियों से युक्त होने पर भी प्रभु का नाम सबके लिए अति सुलभ है ।

326. प्रभु नाम जप में मूल बात क्या है ?

हमें प्रभु नाम निष्ठ होना चाहिए । प्रभु की नाम निष्ठा हमारा बहुत बड़ा कल्याण करती है । हमें प्रभु के जिस नाम पर आस्था हो या जो नाम प्रिय हो उसमें पूर्ण निष्ठा होनी चाहिए कि वह हमारा परम हित और मंगल करने में पूर्णतया समर्थ है । ऐसा विश्वास होने पर प्रभु का वह नाम हमारा मंगल और कल्याण किए बिना नहीं रहता । मूल बात नाम जप में विश्वास, आस्था और निष्ठा की है ।

325. नाम जप करने वाला दूसरों के लिए प्रेरणा कैसे बनता है ?

प्रभु का नाम लेने वाला स्वयं तो तरता ही है और कितनों को नाम लेने की प्रेरणा देकर तरने योग्य बना देता है । नाम जप करने वाले के लिए भवसागर से तरने में कोई शंका की बात ही नहीं बल्कि उसके नाम जप के प्रभाव से उसके संपर्क में आने वाले का भी मंगल और कल्याण होता है । प्रभु का नाम लेने वाला स्वयं तो तरता ही है और दूसरों के लिए तरने का माध्यम और प्रेरणा बनता है ।

324. क्या नाम जप मानव जीवन के लिए उपयोगी है ?

प्रभु का नाम जपने से हमारे भीतर हमारी क्षमताओं का विकास होता है । नाम जप मानव जीवन को पूर्ण पराकाष्‍ठा तक पहुँचा देता है । नाम जप से मानव जीवन में हम वह सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं जो प्राप्त करने योग्य होता है । नाम जप से हमा रे भीतर की पूर्ण क्षमताओं का विकास होता है और हमारा मानव जीवन सफल होता है । मानव जीवन की पूर्ण सफलता के लिए प्रभु का नाम जप बहुत उपयोगी है ।

323. क्या नाम जप से दुर्गम कार्य भी बन जाते हैं ?

जिस हाथ में प्रभु के नाम की माला हो उसमें कुछ पहना हुआ हो तो वह हमें यह बताता है कि हमें प्रभु के नाम में पूर्ण आस्था नहीं है । जब हम नाम जपते हैं तो हमें अपने साधन पर पूर्ण आस्था होनी चाहिए । ऐसा कोई कार्य नहीं जो नाम जप से पूरा नहीं हो सकता । नाम जप कलियुग में दुर्गम-से-दुर्गम कार्य करने में पूर्णतया सक्षम है ।

322. क्या माला के साथ किसी अन्य आलंबन की जरूरत है ?

जिस हाथ से हम माला जपते हैं उसी हाथ में हम ताबीज पहनते हैं या उसी हाथ की अंगुली में किसी के द्वारा बताई रत्न जड़ित अंगूठी पहनते हैं तो इसका अर्थ होता है कि हमें अपनी माला पर भरोसा नहीं है और हमें हमारी माला द्वारा जपे प्रभु नाम के मंत्र पर पूर्ण आस्था नहीं है । ऐसी अवस्था में माला का पूर्ण लाभ नहीं मिलता । जो हाथ सच्चे मन से प्रभु की माला जपता है उसे अन्य किसी आलंबन की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि प्रभु नाम से बड़ा आलंबन कुछ है ही नहीं । ऐसा कोई काम नहीं है जो प्रभु नाम लेने से नहीं बने ।