हम किसी को एक वृक्ष देना चाहते हैं तो उसे उसका बीज देते हैं । ऐसे ही हम प्रभु को पाना चाहते हैं तो बीजरूप में प्रभु का नाम ग्रहण करना चाहिए । यह दृष्टांत हमें बताता है कि जैसे बीज में वृक्ष छुपा हुआ होता है वैसे ही प्रभु के नाम में प्रभु और प्रभु की सभी शक्तियां छिपी हुई होती हैं । जो प्रभु करते हैं वही प्रभु के नाम द्वारा भी करना पूर्णतया संभव है । इसलिए नाम और नामी प्रभु में कभी भेद नहीं करना चाहिए ।
GOD Chanting Personified: Dive into Divine Harmony